भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम आये हो न शब-ए-इन्तज़ार गुज़री है / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Amitprabhakar (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
+ | <poem> | ||
+ | तुम आये हो न शब-ए-इन्तज़ार गुज़री है | ||
+ | तलाश में है सहर बार बार गुज़री है | ||
− | + | जुनूँ में जितनी भी गुज़री बकार गुज़री है | |
− | + | अगर्चे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है | |
− | + | हुई है हज़रत-ए-नासेह<ref>नसीहत देने वाला</ref> से गुफ़्तगू जिस शब | |
− | + | वो शब ज़रूर सर-ए-कू-ए-यार गुज़री है | |
− | + | वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था | |
− | वो | + | वो बात उनको बहोत ना-गवार गुज़री है |
− | + | न गुल खिले हैं, न उनसे मिले, न मै पी है | |
− | + | अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है | |
− | + | चमन में ग़ारत-ए-गुलचीं<ref>फूल तोड़ने से क्षति</ref> से जाने क्या गुज़री | |
− | + | क़फ़स<ref>पिंजड़ा</ref> से आज सबा बेक़रार गुज़री है | |
− | + | </poem> | |
− | चमन में ग़ारत-ए-गुलचीं<ref>फूल तोड़ने से क्षति </ref> से जाने क्या गुज़री | + | {{KKMeaning}} |
− | क़फ़स <ref>पिंजड़ा</ref> से आज सबा बेक़रार गुज़री है | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | < | + |
09:31, 13 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
तुम आये हो न शब-ए-इन्तज़ार गुज़री है
तलाश में है सहर बार बार गुज़री है
जुनूँ में जितनी भी गुज़री बकार गुज़री है
अगर्चे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है
हुई है हज़रत-ए-नासेह<ref>नसीहत देने वाला</ref> से गुफ़्तगू जिस शब
वो शब ज़रूर सर-ए-कू-ए-यार गुज़री है
वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था
वो बात उनको बहोत ना-गवार गुज़री है
न गुल खिले हैं, न उनसे मिले, न मै पी है
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है
चमन में ग़ारत-ए-गुलचीं<ref>फूल तोड़ने से क्षति</ref> से जाने क्या गुज़री
क़फ़स<ref>पिंजड़ा</ref> से आज सबा बेक़रार गुज़री है
शब्दार्थ
<references/>