"सुबह होने पर / त्रिपुरारि कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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जैसे मेरे चेहरे पर तुम्हारा गेसू | जैसे मेरे चेहरे पर तुम्हारा गेसू | ||
जैसे मेरे बदन में तुम्हारी खुशबू | जैसे मेरे बदन में तुम्हारी खुशबू | ||
− | + | बड़े गौर से देखा है इन पहाड़ों में | |
हर दरख़्त की लचकती हुई हर डाली | हर दरख़्त की लचकती हुई हर डाली | ||
भीगे लब पर एक प्यासी तमन्ना लेकर | भीगे लब पर एक प्यासी तमन्ना लेकर | ||
मेरी खुली हुई बाहों में आना चाहती है | मेरी खुली हुई बाहों में आना चाहती है | ||
तुम्हारी ही तरह टूट जाना चाहती है | तुम्हारी ही तरह टूट जाना चाहती है | ||
− | बहुत करीब से छूआ है इन | + | बहुत करीब से छूआ है इन पहाड़ों को |
बहुत ही सख़्त बदन है इनका | बहुत ही सख़्त बदन है इनका | ||
और छूओ तो बर्फ की तरह | और छूओ तो बर्फ की तरह | ||
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एक पल औन्धे मुंह गिरता है | एक पल औन्धे मुंह गिरता है | ||
सर पटकता हुआ पत्थर पर ठण्डा पानी | सर पटकता हुआ पत्थर पर ठण्डा पानी | ||
− | नज़र को चीरते हुए ये | + | नज़र को चीरते हुए ये चीड़ के दरख़्त |
मेरी हथेली पर तेरी तक़दीर के दरख़्त | मेरी हथेली पर तेरी तक़दीर के दरख़्त | ||
अचानक से उगने लगते हैं | अचानक से उगने लगते हैं | ||
गर्म बोसों की कोई बौछार हो जैसे | गर्म बोसों की कोई बौछार हो जैसे | ||
पहली तारीख का बाज़ार हो जैसे | पहली तारीख का बाज़ार हो जैसे | ||
− | मैं | + | मैं व्यास की सतह पर बहने लगता हूँ... |
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23:04, 17 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
मेरी एक आँख में रात अभी सोई है
दुसरी आँख में सुबह सुगबुगाने लगी
सुहागरात से जगी हो मेरी नींद जैसे
मैनें देखा है यहाँ पर आकर
दूर तक पसरा हुआ वादी-ए-कुल्लू
जैसे मेरे चेहरे पर तुम्हारा गेसू
जैसे मेरे बदन में तुम्हारी खुशबू
बड़े गौर से देखा है इन पहाड़ों में
हर दरख़्त की लचकती हुई हर डाली
भीगे लब पर एक प्यासी तमन्ना लेकर
मेरी खुली हुई बाहों में आना चाहती है
तुम्हारी ही तरह टूट जाना चाहती है
बहुत करीब से छूआ है इन पहाड़ों को
बहुत ही सख़्त बदन है इनका
और छूओ तो बर्फ की तरह
एक पल में पिघल से जाते हैं
एक पल औन्धे मुंह गिरता है
सर पटकता हुआ पत्थर पर ठण्डा पानी
नज़र को चीरते हुए ये चीड़ के दरख़्त
मेरी हथेली पर तेरी तक़दीर के दरख़्त
अचानक से उगने लगते हैं
गर्म बोसों की कोई बौछार हो जैसे
पहली तारीख का बाज़ार हो जैसे
मैं व्यास की सतह पर बहने लगता हूँ...