भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चुप-चुप-चुप / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह=उड़न खटोले आ / रमेश तैलंग }} {{KKCat…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
चुप-चुप-चुप ! | चुप-चुप-चुप ! | ||
− | + | बड़े सदा रहते गुस्से में । | |
हँसी कहाँ उनके हिस्से में ? | हँसी कहाँ उनके हिस्से में ? | ||
डाँट-डपट पूरे किस्से में । | डाँट-डपट पूरे किस्से में । |
10:29, 26 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
बड़े अगर बोलें तो भैया,
चुप-चुप-चुप !
चुप-चुप-चुप !
कान खिंचाई बच जाएगी ।
मार-पिटाई बच जाएगी ।
व्यर्थ लड़ाई बच जाएगी ।
चुप-चुप-चुप !
चुप-चुप-चुप !
बड़े सदा रहते गुस्से में ।
हँसी कहाँ उनके हिस्से में ?
डाँट-डपट पूरे किस्से में ।
चुप-चुप-चुप !
चुप-चुप-चुप !