भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आईना / रेशमा हिंगोरानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> साँस लेना मे…) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
शम’अ, आईना लिए घूम रहा है कोई, | शम’अ, आईना लिए घूम रहा है कोई, | ||
चलूं, अपना मुझे दीदार हो न जाए कहीं! | चलूं, अपना मुझे दीदार हो न जाए कहीं! | ||
+ | |||
+ | -रेशमा हिंगोरानी | ||
</poem> | </poem> |
13:43, 2 अक्टूबर 2011 का अवतरण
साँस लेना मेरा दुशवार हो न जाए कहीं,
मौत! तुझसे भी मुझे प्यार हो न जाए कहीं!
कहाँ-कहाँ से मर्ज़ ढूंढ लाई है दुनिया,
कि चारागर, ख़ुद बीमार हो न जाए कहीं!
जुदाई ही रही ता-उम्र नसीबा अपना,
शबे-आख़िर भी यूँ बेकार हो न जाए कहीं!
शम’अ, आईना लिए घूम रहा है कोई,
चलूं, अपना मुझे दीदार हो न जाए कहीं!
-रेशमा हिंगोरानी