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"नीला मौसम! / सरस्वती माथुर" के अवतरणों में अंतर
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हवाओं के संगीत में
जब सर्दियों की शाम ने
अंगड़ाई ली तो
एक गहरे अचम्भे से
चिडिया उड़ गयी पेड़ से
जाने किसे ढूँढने
तभी एक तारा टिमटिमाया
और समुंद्री पक्षी सा
आकाश के पानी में
तैरने लगा
बहती नदी सी
रात धीरे से आई
जलती रही मोमबती सी
गिरती रही धरती के
झुरियों भरे हाथों पर
ओस की तरह
मेरे मन ने कहा कि
कुछ ऐसा हो कि
सुबह ताज़ी
मौसम और गीला हो
यह आसमान और नीला हो!