भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"" यादें "" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है, कभी खुश होता है उसके दुः…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
  
 
जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,
 
जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,
 +
 
कभी खुश होता है उसके दुःख में कभी उसकी ख़ुशी में रोता है,
 
कभी खुश होता है उसके दुःख में कभी उसकी ख़ुशी में रोता है,
  
 
जलता है कभी क्रोध में लगता है जीवन पत्थर है,
 
जलता है कभी क्रोध में लगता है जीवन पत्थर है,
 +
 
खिलता है जब फूलो में लगता जीवन कितना सुन्दर है,
 
खिलता है जब फूलो में लगता जीवन कितना सुन्दर है,
 +
 
इन यादो के फूलो को पत्थर  क्यु हर बार कुचलता है
 
इन यादो के फूलो को पत्थर  क्यु हर बार कुचलता है
 +
 
जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,
 
जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,
  
 
कभी प्रेम से मिलता है , कभी नफरत से जलता है,
 
कभी प्रेम से मिलता है , कभी नफरत से जलता है,
 +
 
कभी हवा में उड़ता है , फिर क्यु धरती पर गिरता है,
 
कभी हवा में उड़ता है , फिर क्यु धरती पर गिरता है,
 +
 
बचपन की यादो में खोया लगता जीवन सपना है ,
 
बचपन की यादो में खोया लगता जीवन सपना है ,
 +
 
जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,
 
जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,
  
 
यादो के दामन में हँसता , क्यु ममता के आँचल में रोता है,
 
यादो के दामन में हँसता , क्यु ममता के आँचल में रोता है,
 +
 
डरता है क्यु उस दुःख से जिसको तो सब को सहना है,
 
डरता है क्यु उस दुःख से जिसको तो सब को सहना है,
 +
 
आशा की किरणों में जीता लगता जीवन सागर है,
 
आशा की किरणों में जीता लगता जीवन सागर है,
 +
 
जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,
 
जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,
  
 
कभी देखता है दूर क्षितिज को ना पलके भी झुकाता है
 
कभी देखता है दूर क्षितिज को ना पलके भी झुकाता है
 +
 
राह देखता है उनकी जो ना लोटके आता है,
 
राह देखता है उनकी जो ना लोटके आता है,
 +
 
वक्त की यादो में खोया लगता जीवन धोखा है ,
 
वक्त की यादो में खोया लगता जीवन धोखा है ,
 +
 
जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,
 
जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,
  
 
ख्वाबो के साये में खोया लगता जीवन ज्योति है
 
ख्वाबो के साये में खोया लगता जीवन ज्योति है
 +
 
आंसू की बूंदों  में लगता जीवन ओंस  का मोती है,
 
आंसू की बूंदों  में लगता जीवन ओंस  का मोती है,
 +
 
जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,
 
जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,
 +
 
कभी खुश होता है उसके दुःख में कभी उसकी ख़ुशी में रोता है,
 
कभी खुश होता है उसके दुःख में कभी उसकी ख़ुशी में रोता है,
  
 
(रचना : महावीर जोशी पूलासर)
 
(रचना : महावीर जोशी पूलासर)

17:52, 7 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,

कभी खुश होता है उसके दुःख में कभी उसकी ख़ुशी में रोता है,

जलता है कभी क्रोध में लगता है जीवन पत्थर है,

खिलता है जब फूलो में लगता जीवन कितना सुन्दर है,

इन यादो के फूलो को पत्थर क्यु हर बार कुचलता है

जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,

कभी प्रेम से मिलता है , कभी नफरत से जलता है,

कभी हवा में उड़ता है , फिर क्यु धरती पर गिरता है,

बचपन की यादो में खोया लगता जीवन सपना है ,

जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,

यादो के दामन में हँसता , क्यु ममता के आँचल में रोता है,

डरता है क्यु उस दुःख से जिसको तो सब को सहना है,

आशा की किरणों में जीता लगता जीवन सागर है,

जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,

कभी देखता है दूर क्षितिज को ना पलके भी झुकाता है

राह देखता है उनकी जो ना लोटके आता है,

वक्त की यादो में खोया लगता जीवन धोखा है ,

जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,

ख्वाबो के साये में खोया लगता जीवन ज्योति है

आंसू की बूंदों में लगता जीवन ओंस का मोती है,

जीवन भर की यादो में मन क्यु भटकता रहता है,

कभी खुश होता है उसके दुःख में कभी उसकी ख़ुशी में रोता है,

(रचना : महावीर जोशी पूलासर)