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"और तुम / मधुप मोहता" के अवतरणों में अंतर
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रात,
एक अथाह अंधियारा,
और किरणों में जीवंत,
सुबह की संभावना की
बात।
शांति
तुम्हारे चेहरे पर खिंची, सतर्क
तुम्हारी आंखों में गरजती,
एक मौन क्रांति।
क्षण
स्वछंद प्रणय का
आभासित,
आश्वस्त, किंतु
अक्षम।
भ्रम
स्वयं में ओझल,
निश्छल,
या भोलेपन का छल,
और तुम।