"स्कूल की डायरी से / विमलेश त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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बसंती झकोरों में मदहोश एक-एक पत्तियाँ | बसंती झकोरों में मदहोश एक-एक पत्तियाँ | ||
लयबद्ध नाचती थीं | लयबद्ध नाचती थीं |
22:37, 4 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
तब देर रात गए एक पागल तान
अँधेरे के साँवर कपोलों पर फेनिल स्पर्श करती थीं
बसंती झकोरों में मदहोश एक-एक पत्तियाँ
लयबद्ध नाचती थीं
जंगल में बजते थे घुँघरू
चाँद चला आता था तकिए के पास
कहने को कोई एक गोपनीय बात
नींद खुलती थी पूरबारी खिड़की से चलकर
सुबह का सूरज सहलाता था गर्म कानों को
और माँ के पैरों का आलता
फैल जाता था झनझन पूरे आँगन में
तब पहली बार देखी थी मैंने
नदी की उजली देह
भर रही थी मेरी साँसों में
पहली बार ही
झँवराए खेतों की सोंधी-सोंधी हँसी
दरअसल वह ऐसा समय था
कि एक कविता मेरी मुट्ठी में धधकती थी
मैं भागता था
घर की देहरी से गाँव के चौपाल तक
सौंपने के लिए
उसे एक मासूम-सी हथेली में
सूरज डूबता था
मैं दौड़ता था
रात होती थी
मैं दौड़ता था
अंततः हार कर थक गया बेतरह मैं
अपनी स्कूल की डायरी में लिखता था एक शब्द
और चेहरे पर उग आई लालटेन को
काँपते पन्नों में छुपा लेता था ।