भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उड़ते हुए / वेणु गोपाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेणु गोपाल |संग्रह=चट्टानों का जलगीत/ वेणु गोपाल }} कभी ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=वेणु गोपाल | |रचनाकार=वेणु गोपाल | ||
− | |संग्रह=चट्टानों का जलगीत/ वेणु गोपाल | + | |संग्रह=चट्टानों का जलगीत / वेणु गोपाल |
}} | }} | ||
14:38, 5 सितम्बर 2008 के समय का अवतरण
कभी
अपने नवजात पंखों को देखता हूँ
कभी आकाश को
उड़ते हुए
लेकिन ॠणी मैं फिर भी
ज़मीन का हूँ
जहाँ
तब भी था--जब पंखहीन था
तब भी रहूंगा जब पंख झर जाएँगे ।
(रचनाकाल : 5 जनवरी 1978)