"उठो धरा के अमर सपूतो / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी | |रचनाकार=द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी | ||
+ | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatGeet}} | ||
+ | <poem> | ||
उठो धरा के अमर सपूतो | उठो धरा के अमर सपूतो | ||
− | + | पुनः नया निर्माण करो। | |
− | पुनः नया निर्माण | + | |
− | + | ||
जन-जन के जीवन में फिर से | जन-जन के जीवन में फिर से | ||
− | + | नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो। | |
− | नई स्फूर्ति, नव प्राण | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
नया प्रात है, नई बात है, | नया प्रात है, नई बात है, | ||
− | + | नई किरण है, ज्योति नई। | |
− | नई किरण है, ज्योति | + | |
− | + | ||
नई उमंगें, नई तरंगे, | नई उमंगें, नई तरंगे, | ||
− | + | नई आस है, साँस नई। | |
− | नई आस है, साँस | + | |
− | + | ||
युग-युग के मुरझे सुमनों में, | युग-युग के मुरझे सुमनों में, | ||
− | + | नई-नई मुसकान भरो। | |
− | नई-नई मुसकान | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ | डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ | ||
− | + | नए स्वरों में गाते हैं। | |
− | नए स्वरों में गाते | + | |
− | + | ||
गुन-गुन-गुन-गुन करते भौंरे | गुन-गुन-गुन-गुन करते भौंरे | ||
− | + | मस्त हुए मँडराते हैं। | |
− | मस्त हुए मँडराते | + | |
− | + | ||
नवयुग की नूतन वीणा में | नवयुग की नूतन वीणा में | ||
− | + | नया राग, नवगान भरो। | |
− | नया राग, नवगान | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
कली-कली खिल रही इधर | कली-कली खिल रही इधर | ||
− | + | वह फूल-फूल मुस्काया है। | |
− | वह फूल-फूल मुस्काया | + | |
− | + | ||
धरती माँ की आज हो रही | धरती माँ की आज हो रही | ||
− | + | नई सुनहरी काया है। | |
− | नई सुनहरी काया | + | नूतन मंगलमय ध्वनियों से |
− | + | गुंजित जग-उद्यान करो। | |
− | नूतन | + | |
− | + | ||
− | गुंजित जग-उद्यान | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
सरस्वती का पावन मंदिर | सरस्वती का पावन मंदिर | ||
− | + | यह संपत्ति तुम्हारी है। | |
− | यह संपत्ति तुम्हारी | + | |
− | + | ||
तुम में से हर बालक इसका | तुम में से हर बालक इसका | ||
− | + | रक्षक और पुजारी है। | |
− | रक्षक और पुजारी | + | |
− | + | ||
शत-शत दीपक जला ज्ञान के | शत-शत दीपक जला ज्ञान के | ||
− | + | नवयुग का आह्वान करो। | |
− | नवयुग का आह्वान | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
उठो धरा के अमर सपूतो, | उठो धरा के अमर सपूतो, | ||
− | + | पुनः नया निर्माण करो। | |
− | पुनः नया निर्माण | + | </poem> |
11:12, 7 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
उठो धरा के अमर सपूतो
पुनः नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
नया प्रात है, नई बात है,
नई किरण है, ज्योति नई।
नई उमंगें, नई तरंगे,
नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में,
नई-नई मुसकान भरो।
डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ
नए स्वरों में गाते हैं।
गुन-गुन-गुन-गुन करते भौंरे
मस्त हुए मँडराते हैं।
नवयुग की नूतन वीणा में
नया राग, नवगान भरो।
कली-कली खिल रही इधर
वह फूल-फूल मुस्काया है।
धरती माँ की आज हो रही
नई सुनहरी काया है।
नूतन मंगलमय ध्वनियों से
गुंजित जग-उद्यान करो।
सरस्वती का पावन मंदिर
यह संपत्ति तुम्हारी है।
तुम में से हर बालक इसका
रक्षक और पुजारी है।
शत-शत दीपक जला ज्ञान के
नवयुग का आह्वान करो।
उठो धरा के अमर सपूतो,
पुनः नया निर्माण करो।