भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तेर मेर छांडे बिना, देर-फेर फेर पडे / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी }} <poem> तेर मेर छांडे ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

10:46, 9 दिसम्बर 2011 का अवतरण

तेर मेर छांडे बिना, देर-फेर फेर पडे,
उर में हरि हेरे बिना, मिले कहां बावरे।
लगाके लंगोटी बना, वारे वा रोटी दास,
दुनियो की न आस तजी, झूठा तप ताव रे।
पेट भरण भरण हेत करता जरगरण मूढ़,
ज्ञान ध्यान भक्ति बिन कहां हर्ष चाव रे।
कहता शिवदीनराम राम-राम राम रिझा,
त्यागो अभिमान मान संत शरण आवरे।