भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तेर मेर छांडे बिना, देर-फेर फेर पडे / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी }} <poem> तेर मेर छांडे ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:46, 9 दिसम्बर 2011 का अवतरण
तेर मेर छांडे बिना, देर-फेर फेर पडे,
उर में हरि हेरे बिना, मिले कहां बावरे।
लगाके लंगोटी बना, वारे वा रोटी दास,
दुनियो की न आस तजी, झूठा तप ताव रे।
पेट भरण भरण हेत करता जरगरण मूढ़,
ज्ञान ध्यान भक्ति बिन कहां हर्ष चाव रे।
कहता शिवदीनराम राम-राम राम रिझा,
त्यागो अभिमान मान संत शरण आवरे।