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"जिस तरह प्रकृति में हवा बहती है / अनुपमा पाठक" के अवतरणों में अंतर

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13:29, 17 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

जिस तरह प्रकृति में
हवा बहती है
वैसे ही
कवि के अंतर में
कविता बहनी चाहिए!

प्रेरणा से ही
सृजन संभव है
जब न लिख सकें
तो कह सकें कि गति रुक गयी है
कम से कम
ये ईमानदारी...तो रहनी चाहिए!

विचारों की लौ से
करो रौशन
जहां को
ये क्या बेतुकी जिद लिए बैठे हो
कि, उजाला बिखेरने के लिए
वह्नि चाहिए!

एक जागरूक
सुनने वाला बैठा हो, तो-
तमाम लेखनकार्य छोड़
तुम्हें उससे
एक कविता
कहनी चाहिए!

जिस तरह प्रकृति में
हवा बहती है
वैसे ही
कवि के अंतर में
कविता बहनी चाहिए!