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"निष्ठुरता / जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'" के अवतरणों में अंतर
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सब खो, पाया मैंने यह वर | सब खो, पाया मैंने यह वर | ||
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::दुर्लभते, तू मेरी! | ::दुर्लभते, तू मेरी! | ||
संकट-स्नेही असफल उर को | संकट-स्नेही असफल उर को |
11:03, 22 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
एक अनंत व्यथा जीवन में
एक अभाव हृदय में,
सब खो, पाया मैंने यह वर
तेरे चरम प्रणय में।
ओ निष्ठुरते, दूर लक्ष्य की-
दुर्लभते, तू मेरी!
संकट-स्नेही असफल उर को
प्रिय केवल छवि तेरी!
ज्ञानी हँसें, निराशा ही पागल प्राणों की आशा है,
सर्वनाश-ज्वाला में जब आत्मार्पण की अभिलाषा है!