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'''सवेरे उठा तो धूप खिली थी / अज्ञेय''' ये कविता कितनी नावों में कितनी बार संग्रह में '''उधार / अज्ञेय''' के नाम से मौजूद है, और मेरे हिसाब से यही इसका सही शीर्षक है, बाक़ी आप देख लीजिए। इसके अलावा आपने इन कविताओं में (या शायद आप हमेशा ऐसा करती हैं) चंद्रबिंदु के इस्तेमाल में ग़लती की है, जो कि दरअसल आपकी ग़लती न होकर छापने वालों की है। तफ़सील के लिए आप [[सदस्य:Hemendrakumarrai|यहाँ]] और [[कविता कोश में वर्तनी के मानक]] वाले पन्ने पर जाइए। वर्तनी मानक वाले पन्ने के अनुस्वार और अनुनासिक के सैक्शन में मैंने एक आपत्ति की थी, उसे शायद रिवर्ट कर दिया गया है, मैं उस नियम को वापस डालने के लिए ललित जी से बात करूँगा। ख़ैर, अफ़सोस की बात है कि ये ग़लती इतनी आम हो गई है कि इसे सही समझा जाने लगा है।
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[[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]] --[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] ०९:१२, ९ अप्रैल २००८ (UTC)

14:42, 9 अप्रैल 2008 का अवतरण

नमस्कार प्रतिष्ठा,

कविता कोश में आपका योगदान बहुत ही सराहनीय है। इतना सारा योगदान देख कर मन प्रसन्न हो जाता है। कोश आपके इस योगदान को स्मरण रखेगा।

आज आपने महादेवी वर्मा और जयशंकर प्रसाद की बहुत से रचनाएँ कोश में जोड़ी हैं -क्या ये रचनाएँ रचनाकारों के किसी कविता संग्रह से ली गयी हैं? यदि हाँ, तो कृपया संग्रहों के नाम बतायें -ताकि संग्रह का अलग से पृष्ठ बना कर उस संग्रह की सारी रचनाएँ संग्रह के पन्ने पर स्थानांतरित की जा सकें।

शुभाकांक्षी

--Lalit Kumar १९:५६, २० सितम्बर २००७ (UTC)


ललित जी

आपका आभार|

जयशंकर प्रसाद कि रचनाऒ मे जिन नाम मे "झरना" साथ मे है वॊ साभी "झरना" से ली गई है|परन्तु इनका sequence मुझे पता नही|

प्रतिष्ठा

नमस्ते प्रतिष्ठा,

मैनें "झरना" के लिये अलग से पन्ना बना दिया है। झरना में यदि और पृष्ठ बनाने हों तो उनके लिंक इसी नये पन्ने पर बनाये। "कानन-कुसुम" के लिये आपके द्वारा बनाया गया पन्ना सही है। आप इस काम को आगे बढाईये। "सूर सुखसागर" को भी आप जोड़ सकती हैं। यदि कोई समस्या आये तो बताईयेगा। गलती हो जाएगी -ऐसी कोई चिंता मन में ना रखें -आप तो जानती ही हैं कि कविता कोश में सारी गलतियाँ सुधारी जा सकती हैं।

शुभाकांक्षी

--Lalit Kumar ०९:२०, २५ सितम्बर २००७ (UTC)

वर्तनी (Spelling) की गलतियाँ

प्रतिष्ठा,

चूंकि आपको सूरदास जी की रचनाएँ स्वयं टाइप नहीं करनी पड़ रही हैं -सो आप copy-paste कर के save करने से पहले वर्तनी (spelling) kकी त्रुटियों को सुधार दें। दो शब्दों का आपस में जुड़ा होना इन रचनाओं के text में सबसे अधिक पायी जाने वाली गलती है। इन गलतियों को कृपया साथ-साथ सुधार दें -अन्यथा इन्हें बहुत समय तक नहीं सुधारा जा सकेगा।

शुभाकांक्षी

--Lalit Kumar २१:५८, २७ सितम्बर २००७ (UTC)

प्रतिष्ठा,

आपने तो सूरदास जी की रचनाओं का कविता कोश में अम्बार लगा दिया है। लेकिन मुझे अब लगने लगा है कि ये सारी रचनाएँ शायद ठीक से सूचीबद्ध नहीं हैं। संख्या इतनी ज़्यादा है कि थोड़ा confusion होने लगा है। क्या आप कभी इस बारे में Skype, GTalk, MSN या Yahoo Messenger पर बात कर सकती हैं?

शुभाकांक्षी

--Lalit Kumar १३:५६, ३ अक्टूबर २००७ (UTC)


कल मैने जो रचनाऐ जोडी उन के अलावा सभी सही sequence मे है| आप मुझ से बात कर सकते है | मै रोज ७:00-८:00 IST online आती हुँ। अगर ये समय आप की सुविधानुसार नहीं है तो शनीवार और रवीवार को हम समय निर्धारित कर सकते है|

प्रतिष्ठा


भूल-ग़लती तो पहले से ही मौजूद थी

प्रतिष्ठा जी, कल आपने मुक्तिबोध की ये कविता दुबारा डाल दी। आपने ग़लती के ग पर नुक्ता नहीं लगाया, बस इन दोनों कविताओं में ये फ़र्क़ रह गया, आपने मुक्तिबोध की सूची पर गौर नहीं किया।

--Sumitkumar kataria ०२:३३, २३ फरवरी २००८ (UTC)

26 फ़रवरी को जो आपने अज्ञेय की कविताएँ डाली थी

सवेरे उठा तो धूप खिली थी / अज्ञेय ये कविता कितनी नावों में कितनी बार संग्रह में उधार / अज्ञेय के नाम से मौजूद है, और मेरे हिसाब से यही इसका सही शीर्षक है, बाक़ी आप देख लीजिए। इसके अलावा आपने इन कविताओं में (या शायद आप हमेशा ऐसा करती हैं) चंद्रबिंदु के इस्तेमाल में ग़लती की है, जो कि दरअसल आपकी ग़लती न होकर छापने वालों की है। तफ़सील के लिए आप यहाँ और कविता कोश में वर्तनी के मानक वाले पन्ने पर जाइए। वर्तनी मानक वाले पन्ने के अनुस्वार और अनुनासिक के सैक्शन में मैंने एक आपत्ति की थी, उसे शायद रिवर्ट कर दिया गया है, मैं उस नियम को वापस डालने के लिए ललित जी से बात करूँगा। ख़ैर, अफ़सोस की बात है कि ये ग़लती इतनी आम हो गई है कि इसे सही समझा जाने लगा है।

वार्ता --Sumitkumar kataria ०९:१२, ९ अप्रैल २००८ (UTC)