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श्रीगुरु गूढ़ ज्ञान के दानी।
देख सर्व-संघात ब्रह्म की अटल एकता जानी,
भेदों से भरपूर अविद्या भूल-भरी पहचानी।
एक वस्तु में तीन गुणों की मायिक महिमा मानी,
ठोस-पोल की तारतम्यता, मूल प्रकृति ने ठानी।
देश, दिशा, आकाश, काल, भू, मारुत, पावक, पानी,
इनके साथ जीव की जागी, ज्योति मनोरस सानी।
छोटा-सा उपदेश दिया है, बढ़िया बात बखानी,
तो भी मूढ़ नहीं समझेंगे, ‘शंकर’ कूट कहानी।