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"झीना आलोक / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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भोर की  किरन
 
भोर की  किरन
 
फुनगी पर शीशफूल-सी
 
फुनगी पर शीशफूल-सी
                    खिसक गई
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                  पीन वक्ष से  
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विरल यामिनी दुकूल-सी ।
 
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बिन बानी बोलने लगे
 
बिन बानी बोलने लगे
  
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पंकिल छाया बबूल-सी ।               
 
पंकिल छाया बबूल-सी ।               
 
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02:37, 8 जनवरी 2012 का अवतरण

झूल रही
भोर की किरन
फुनगी पर शीशफूल-सी
                  खिसक गई
                  पीन वक्ष से
विरल यामिनी दुकूल-सी ।

प्रतिबिम्बित झना आलोक
चाँदी की सीढ़ियाँ उतर
फैल गया बन्द झील में
कंधों पर काँवर धर कर
जड़ता की
अर्गला खुली
काँप गई देह कूल-सी ।

छन-छन कर छन्द डाल से
अपनापन घोलने लगे
पर्वत के स्वर्ण हाशिए
बिन बानी बोलने लगे

                  मंदिर के
                पाँव पर गिरी
पंकिल छाया बबूल-सी ।