भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रेम बसाया बस रहा, नगर डगर में प्रेम / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी }} <poem> प्रेम किये जा ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
प्रेम किये जा प्रेम हैनहीं प्रेम में  पाप,
+
 
बसा प्रेम अपने हृदय उर में आपो आप।
+
प्रेम  बसाया  बस  रहानगर  डगर में  प्रेम,
उर में आपो आप, राम को प्रेम पियारा,
+
तन  मन में,  बन  में  बसा, नर में घर में प्रेम।
बिना प्रेम के जगत खुष्क है कडवा-खारा।
+
नर में  घर  में  प्रेम,  प्रेम है  प्यारे  हर  में,
शिवदीन प्रेम फल है अमी, मीठा प्रेमी स्वाद,
+
कृष्ण  नाम  में  प्रेम,    प्रेम  है सीतावर  में।
प्रेम किये तें हो गये कितने घर आबाद।
+
जल  में  थल  में  प्रेम है, प्रेम जहां  नहीं  नेम,
राम गुण गायरे।।
+
शिवदीन  नेममय  प्रेम  है, प्रेम प्रेममय  प्रेम।
 +
                        राम गुण गायरे।।  
 
</poem>
 
</poem>

20:48, 23 जनवरी 2012 के समय का अवतरण


प्रेम बसाया बस रहा, नगर डगर में प्रेम,
तन मन में, बन में बसा, नर में घर में प्रेम।
नर में घर में प्रेम, प्रेम है प्यारे हर में,
कृष्ण नाम में प्रेम, प्रेम है सीतावर में।
जल में थल में प्रेम है, प्रेम जहां नहीं नेम,
शिवदीन नेममय प्रेम है, प्रेम प्रेममय प्रेम।
                        राम गुण गायरे।।