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"ज़िन्दगी की मौत / रेशमा हिंगोरानी" के अवतरणों में अंतर
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09:57, 30 जनवरी 2012 के समय का अवतरण
हाँ मैं पत्थर की गुडिया हूँ
न साँस लेती,
न जीती हूँ
छूने लगते हो जब मुझे,
रोकती, न टोकती
बस एकटक
पथराई आँखों से
निहारती हूँ तुम्हें...
और रगों में दौडते हैं
शबनम के कत्रे
जो कभी
अश्क बन
चमकते,
छलकते हैं कभी…
औ’ कभी
खून की मेंहदी रचाते हाथों पर...
दिल की धडकन भी
दस्तक
दे दे के
दिला जाती है याद –
शायद
अब
भी
ज़िन्दा
हूँ..?