भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खँडहर-ए-हयात / रेशमा हिंगोरानी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:49, 31 जनवरी 2012 के समय का अवतरण

मेरे टूटे हुए ख्वाबों के महल,
जहाँ तन्हाई जगा करती है,
औ’ मुस्कुराहटों में लिपटे हुए,
न जाने कितने बेशुमार अश्क
सोते हैं,
रिहाई नारसा है जिनके लिए !

और तो सब उजड गया है यहाँ,
बने हुए हैं आज भी उसी तरह लेकिन...
शजर गमों के,
और मस्सरतों
के वो खँडहर...
जिन्हें आँधी, न अश्क,
कोई हिला पाया कभी !

सुना है कोई शहँशाह
चाहता था कभी...
बनाना मक़्बरा यहाँ भी,
संग-ए-मर्मर का !

1996