भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सौन्दर्य की दुर्दषा / नाथूराम शर्मा 'शंकर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नाथूराम शर्मा 'शंकर' }} {{KKCatPad}} <poem> नवेल...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:05, 8 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
नवेली उठ बोल !
वेणी-नागिन विकल पड़ी है, शिथिल माँग मुख खोल,
खंजरीट मृग खोल रहे हैं, नयन-सुयश की पोल।
लला अधर बिम्बा-फल सूखे, पड़ गये पीत कपोल,
दशन-मोतियों की लड़ियों का, अब न रहा कुछ मोल।
कंबु-कण्ठ-कल-कण्ठ न कूके, दबकी दमक अतोल,
गढ़ें न रसियों की छतियों में, कठिन पयोधर गोल।
परखी सब कोमल अंगों में, अकड़ टटोल-टटोल,
हा! ‘शंकर’ क्या अब न बजेगा, मदन-विजय का ढोल।