भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मरण / नाथूराम शर्मा 'शंकर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नाथूराम शर्मा 'शंकर' }} {{KKCatPad}} <poem> घर क...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:07, 8 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
घर को छोड़ गयो घर वारो।
बारह बाट आज कर डारो, अपनो कुनबा सारो,
भोग-विलास विसार अकेलो, आप निशंक सिधारो।
शोभा दूर भई बाखर की, धाय धँसो अँधियारो,
चरों ओर उदासी छाई, दिपत न एकहु द्वारो।
आओ रे मिल मित्र-मिलापी, इस-उत खोज निहारो,
कौन देश में जाय बिराजो, कौन गैल गहि प्यारो।
अब काहू विधि नाहिं मिलेगो, मिट गयो मेल हमारो,
‘शंकर’ या सूने मन्दिर को, धीरज धार पजारो।