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"प्यार / विजय कुमार सप्पत्ति" के अवतरणों में अंतर
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सुना है कि मुझे कुछ हो गया था...
बहुत दर्द होता था मुझे,
सोचता था, कोई खुदा ;
तुम्हारे नाम का फाहा ही रख दे मेरे दर्द पर…
कोई दवा काम ना देती थी…
कोई दुआ असर न करती थी…
और फिर मैं मर गया ।
जब मेरी कब्र बन रही थी,
तो;
मैंने पूछा कि मुझे हुआ क्या था।
लोगो ने कहा;
" प्यार "