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"चलन से बाहर / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
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13:56, 24 मार्च 2012 के समय का अवतरण
अब तो सिलवानी ही पड़ेगी
कपड़ों की नई जोड़ी
शौक नहीं
मेरी मजबूरी है।
घिस गए हैं
मेरे पहनने के कपड़े
खो गई है चमक
खुलने लगे हैं टाँके
ढीले पड़ गए हैं काज
निकलने लग गए हैं बटन
दर्जी ने साफ कर दिया है इनकार
अब रफू से नहीं चलेगा काम
मरम्मत के खर्च से
कहीं बेहतर है
बनवा ली जाए
नई पोशाक
वैसे भी यह नहीं चलेगी
ज्यादा दिन।
बीवी तो कहती है
ईमानदारी के सूती कपड़ों का
अब चलन भी नहीं रहा।