"माई / मनोज भावुक" के अवतरणों में अंतर
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अबो जे कबो छूटे लोर आंखिन से
बबुआ के ढॉंढ़स बंधावेले माई
आवे ना ऑंखिन में जब नींद हमरा त
सपनो में लोरी सुनावेले माई
बाबूजी दउड़ेनी जब मारे-पीटे त
अंचरा में अपना लुकावेलेमाई
छोड़ीना, बबुआ के मन ठीकनइखे
झूठहूं बहाना बनावेलेमाई
ऑंखिन का सोझा से जब दूर होनी त
हमरे फिकिर में गोता जालेमाई
आंखिन का आगा लवटि के जब आई त
हमरा के देखते धधा जालेमाई
अंगना से दुअरा आ दुअरा से अंगना ले,
बबुआ का पाछे ही धावेलेमाई
किलकारीमारत, चुटकीबजावत,
करि के इषाराबोलावेले माई
हलरावे, दुलरावे, पुचकारे प्यार से
बंहियनमें झुला झुलावेले माई
अंगुरीधराई, चले के सिखावत
जिनिगी के ´क-ख´ पढ़ावेले माई
गोदी से ठुमकि-ठुमकि जब भागी त
पकिड़ के तेल लगावेले माई
मउनी बनी अउर “भुंइयालोटाई त
प्यार के थप्पड़ देखावेलेमाई
पास-पड़ोस से आवे जो ओरहन
कानेकनइठी लगावेले माई
बकी तुरन्त लगाई के छातीसे
बबुआके अमरित पियावेलेमाई
जरको सा लोरवा ढरकि जाला अंखिया से
देके मिठाई पोल्हावेले माई
चन्दाममा के बोला के, कटोरी में
दूध- भात गुट-गुट खियावेले माई
बबुआ का जाड़ा में ठण्डी ना लागे
तापेले बोरसी, तपावेले माई
गरमी में बबुआके छूटे पसेना त
अंचरा के बेनिया डोलावेलेमाई
मड़ई में “भुंइया “भींजत देख बबुआ के
अपने “भींजे, नाभिंजावेले माई
कवनो डइनिया के टोना ना लागे
धागा करियवा पेन्हावेले माई
“भेजे में जब कबो देर होला चिट्ठी त
पंडित से पतरा देखावेलेमाई
रोवेले रात “भर, सूते नाचैन से
भोरे भोरे कउवा उचरावेलेमाई
जिनिगी के अपना ऊ जिनिगी ना बूझेले
´बबुए नू जिनिगीह´ बोलेलेमाई
दुख खाली हमरे ऊ सह नाहींपावेले
दुनिया के सब दुख ढो लेलेमाई
´जिनिगी के दीया´ आ ´ऑंखिन केपुतरी´
´बुढ़ापा केलाठी´ बतावेलेमाई
´हमरो उमिरिया मिल जाएहमरा बबुआ के´
देवता-पितरके गोहरावेले माई