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/* चोका */
* इसमें यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि इसकी पहली तीन पंक्तियाँ कोई स्वतन्त्र हाइकु है । इसका अर्थ इसका अर्थ पहली से पाँचवीं पंक्ति तक व्याप्त होता है ।
==चोका==
चोका (लम्बी कविता) पहली से तेरहवीं शताब्दी में जापानी काव्य विधा में महाकाव्य की कथाकथन शैली रही है । इस जापानी विधा को हिन्दी काब्य जगत के अनुशासन से परिचित कराते हुये हुए [[रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] ने बताया है:-
* मूलत; चोका गाए जाते रहे हैं । चोका का वाचन उच्च स्वर में किया जाता रहा है ।यह प्राय: वर्णनात्मक रहा है । इसको एक ही कवि रचता है।
* इसका नियम इस प्रकार है -
5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7 और अन्त में +[एक ताँका जोड़ दीजिए।] या यों समझ लीजिए कि समापन करते समय इस क्रम के अन्त में 7 वर्ण की एक और पंक्ति जोड़ दीजिए । इस अन्त में जोड़े जाने वाले ताँका से पहले कविता की लम्बाई की सीमा नहीं है । इस कविता में मन के पूरे भाव आ सकते हैं ।
* इनका कुल पंक्तियों का योग सदा विषम संख्या [ ODD] यानी 25-27-29-31……इत्यादि ही होता है ।
 
==हाइकु का चित्रात्मक निरूपण है [[कविता कोश के मानक| हाइगा]]==
[[कविता कोश के मानक| हाइगा]] शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है '''हाइ''' और '''गा''' । '''हाइ''' शब्द का अर्थ है [[हाइकु|हाइकु]] जो जापनी कविता की एक समर्थवान विधा है और '''गा''' का तात्पर्य है चित्र । इस प्रकार [[कविता कोश के मानक| हाइगा]] का अर्थ है चित्रों के समायोजन से वर्णित किया गया [[हाइकु|हाइकु]]।