"पाँच सितारा अस्पताल / संजीव बख़्शी" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= संजीव बख़्शी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> पा...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
बेतरतीब पड़े जूते, जूतियाँ,चप्पलें, | बेतरतीब पड़े जूते, जूतियाँ,चप्पलें, | ||
बदहाल जूते, जूतियाँ, और चप्पलें | बदहाल जूते, जूतियाँ, और चप्पलें | ||
− | घिसे, फटे ,पुराने अधिकांश | + | घिसे, फटे, पुराने अधिकांश |
कितनी जल्दी में या ज़रूरी में रहा होगा वह | कितनी जल्दी में या ज़रूरी में रहा होगा वह | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
चाहे जो हो एकाएक जब मेरी नज़र पड़ी थी | चाहे जो हो एकाएक जब मेरी नज़र पड़ी थी | ||
− | घिसे ,फटे ,पुराने जूतों, जूतियों और चप्पलों पर | + | घिसे, फटे, पुराने जूतों, जूतियों और चप्पलों पर |
तो एकबारगी मैं ख़ुश हो गया था कि | तो एकबारगी मैं ख़ुश हो गया था कि | ||
झुग्गियाँ भी पीछे नहीं है | झुग्गियाँ भी पीछे नहीं है |
10:51, 21 मई 2012 के समय का अवतरण
पाँच-सितारा सुविधायुक्त एक अस्पताल
भव्य मुख्य-द्वार
उस भव्य मुख्य-द्वार के सामने
बेतरतीब पड़े जूते, जूतियाँ,चप्पलें,
बदहाल जूते, जूतियाँ, और चप्पलें
घिसे, फटे, पुराने अधिकांश
कितनी जल्दी में या ज़रूरी में रहा होगा वह
जिसकी एक चप्पल यहाँ है तो दूसरी दस क़दम दूर
अलग-अलग दिशाओं को बताते हुए
बहुत ही तरतीब से एक किनारे पर
सुरक्षित ढंग से रखी है कुछ क़ीमती जूतियाँ और चप्पलें
चाहे जो हो एकाएक जब मेरी नज़र पड़ी थी
घिसे, फटे, पुराने जूतों, जूतियों और चप्पलों पर
तो एकबारगी मैं ख़ुश हो गया था कि
झुग्गियाँ भी पीछे नहीं है
कि इस भव्य अस्पताल की सेवाएँ नहीं है केवल अमीरों के नाम
क़दम से क़दम मिला कर अब चलतें हैं सब के सब
यह लोकतंत्र है
तब ही मैं मायूस हो गया यह सोच कर कि
ज़मीन बिक गई होगी या घर को रहन में रख दिया गया होगा शायद
बचा कर रखे होंगे जो गहने बिक गए होंगे
या माँग जाँच कर कहीं से जुगाड़ किया गया होगा
और घिस गई होंगी चप्पलें इन सब के चलते
और अब पड़े हुए हैं भले ही बेतरतीब
इंतज़ार कर रहे हैं कि जब वह बाहर निकले तो मैं उन्हें तुरत मिल जाऊँ
और उनकी हर भाग-दौड़ में साथ रहूँ ।