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"सुनो! तुम्हें याद है / मधु गजाधर" के अवतरणों में अंतर

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सिन्दूर की
+
सुनो !
एक रेखा,
+
तुम्हें याद है
पूरे जिस्म में मेरे,
+
यहाँ कभी
ऊपर से नीचे तक,
+
एक  
फैला देती है
+
कच्ची पगडण्डी
एक अद्भुत
+
हुआ करती थी
स्पंदन
+
दोनों तरफ
 +
खुशहाली के पेड़ों  से घिरी
 +
जो अनेक
 +
घुमाव लेकर भी
 +
पहुंचती  थी
 +
तुम्हारे दिल तक,
 +
अब  वो
 +
पगडण्डी
 +
पत्थरों से बिछी,
 +
कोलतार से रची
 +
एक पक्की
 +
लम्बी सड़क बन गयी है
 +
जो बंद है आगे से
 
और
 
और
किसी के होने का ख्याल,
+
कहीं नहीं पहुंचती
रच देता है लाली
+
मेरे होठों पर,
+
उस के सपने
+
भर देते हैं
+
नारीत्व का  काजल
+
मेरी
+
इन आँखों में,
+
तुम क्या जानों
+
कि करोड़ों लोगों की
+
इस दुनिया में
+
किसी एक के
+
बन जाने का,
+
या
+
किसी एक को
+
अपना बना लेने का
+
ये एहसास
+
उफ़! कितना प्यारा है ,
+
भर देता है प्राण
+
मुझ पाथर  की
+
मूरत में,
+
निखार देता है
+
मेरे चेहरे पर
+
संतुष्टि के  सौन्दर्य को
+
और डुबो देता है
+
सुख के अथाह
+
सागर में .....
+
मुझे..........
+
जिस से मैं फिर कभी
+
निकलना नहीं चाहती,
+
जन्म जन्मान्तर तक
+
बस मैं...
+
डूबी ही रहना चाहती हूँ
+
 
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09:55, 24 मई 2012 के समय का अवतरण

सुनो !
तुम्हें याद है
यहाँ कभी
एक
कच्ची पगडण्डी
हुआ करती थी
दोनों तरफ
खुशहाली के पेड़ों से घिरी
जो अनेक
घुमाव लेकर भी
पहुंचती थी
तुम्हारे दिल तक,
अब वो
पगडण्डी
पत्थरों से बिछी,
कोलतार से रची
एक पक्की
लम्बी सड़क बन गयी है
जो बंद है आगे से
और
कहीं नहीं पहुंचती