भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हवाएँ चैत की / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अज्ञेय
 
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=
+
|संग्रह=बावरा अहेरी / अज्ञेय
 
}}
 
}}
 
{{KKPrasiddhRachna}}
 
{{KKPrasiddhRachna}}
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
:कोठरी में लौ बढ़ा कर दीप की
 
:कोठरी में लौ बढ़ा कर दीप की
 
गिन रहा होगा महाजन सेंत की।
 
गिन रहा होगा महाजन सेंत की।
 +
 +
'''गुरदासपुर, अमृतसर (बस में), 23 अप्रैल, 1951'''
 
</poem>
 
</poem>

16:15, 6 अगस्त 2012 का अवतरण

बह चुकी बहकी हवाएँ चैत की
कट गईं पूलें हमारे खेत की
कोठरी में लौ बढ़ा कर दीप की
गिन रहा होगा महाजन सेंत की।

गुरदासपुर, अमृतसर (बस में), 23 अप्रैल, 1951