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कोई भीड़ से | कोई भीड़ से | ||
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अनसुने अध्यक्ष हम | अनसुने अध्यक्ष हम | ||
ओ कमल की पंखुरी! बिखरो हमारे पास भी । | ओ कमल की पंखुरी! बिखरो हमारे पास भी । | ||
− | लेखनी को हम | + | लेखनी को हम बनाए |
गीतवंती बाँसुरी | गीतवंती बाँसुरी | ||
ढूंढते परमाणुओं की | ढूंढते परमाणुओं की |
13:34, 8 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
बाँह फैलाए खड़े,
निरुपाय, तट के वृक्ष हम
ओ नदी! दो चार पल, ठहरो हमारे पास भी ।
चाँद को छाती लगा
फिर सो गया नीलाभ जल
जागता मन के अंधेरों में
घिरा निर्जन महल
और इस निर्जन महल के
एक सूने कक्ष हम
ओ भटकते जुगनुओ ! उतरो हमारे पास भी ।
मोह में आकाश के
हम जुड़ न पाए नीड़ से
ले न पाए हम प्रशंसा-पत्र
कोई भीड़ से
अश्रु की उजड़ी सभा के,
अनसुने अध्यक्ष हम
ओ कमल की पंखुरी! बिखरो हमारे पास भी ।
लेखनी को हम बनाए
गीतवंती बाँसुरी
ढूंढते परमाणुओं की
धुंध में अलकापुरी
अग्नि-घाटी में भटकते,
एक शापित यक्ष हम
ओ जलदकेशी प्रिये! सँवरो हमारे पास भी ।