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"खटखटाता नहीं कोई / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर

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खो देता है खुद को
 
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दरवाज़ा रास्ता हो कर।
 
दरवाज़ा रास्ता हो कर।

12:44, 28 अगस्त 2012 के समय का अवतरण


खटखटाता नहीं कोई
जो खुले रहते हैं सदा
उन दरवाज़ों को
गुज़रते रहते हैं लोग
उन में से हो कर।

एक हलकी-सी थपकी
कभी चाह सकता है कोई
जिस के लिए पर
होना पड़ेगा बन्द उस को
खो देता है खुद को
दरवाज़ा रास्ता हो कर।

(1990)