भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अजीब बात / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह=सुनो चारुशी...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:25, 13 सितम्बर 2012 का अवतरण
जगहें खत्म हो जाती हैं
जब हमारी वहॉं जाने की इच्छाएं
खत्म हो जाती हैं
लेकिन जिनकी इच्छाएं खत्म हो जाती हैं
वे ऐसी जगहों में बदल जाते हैं
जहॉं कोई आना नहीं चाहता
कहते हैं रास्ता भी एक जगह होता है
जिस पर जिन्दगी गुजार देते हैं लोग
और रास्ते पॉंवों से ही निकलते हैं
पॉंव शायद इसीलिए पूजे जाते हैं
हाथों को पूजने की कोई परंपरा नहीं
हमारी संस्कृति में
ये कितनी अजीब बात है।