"जीवन के प्रति / विमल राजस्थानी" के अवतरणों में अंतर
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमल राजस्थानी |संग्रह=लहरों के च...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 23: | पंक्ति 23: | ||
भीतर का गूँज नहीं जानी, कोलाहल मन बहला न सका | भीतर का गूँज नहीं जानी, कोलाहल मन बहला न सका | ||
− | बच | + | बच गयीं उमरिया के खाते |
थोड़ी-सी सपनों की बातें | थोड़ी-सी सपनों की बातें | ||
मरूधर की प्यार प्रबल थी, पर | मरूधर की प्यार प्रबल थी, पर |
16:55, 21 अक्टूबर 2012 का अवतरण
इस जग में बस, केवल तुम ही वह गीत
जिसे मैं गा न सका।
वेदना तृषा से तड़प गयी, प्यासी रह गयी टीस क्वाँरी
आँसू तो बहुत दिये तुमने, मैं पीड़ा को नहला न सका
कहने को तो क्या-क्या न मिला
किस्मत से मुझको नहीं गिला
उँगलियाँ तुम्हीं ने तो छूकर-
दे दिया हठीलापन इनको
तुमने दी बीन थमा मुझको, मैं उसके तार बजा न सका
समझा तितली को, फूलों को
जाना दर्दीलें शूलों को
देखा धरती का दिन मैंने
अभिमान गगन का पहचाना
भीतर का गूँज नहीं जानी, कोलाहल मन बहला न सका
बच गयीं उमरिया के खाते
थोड़ी-सी सपनों की बातें
मरूधर की प्यार प्रबल थी, पर
मिल गया कहीं पलकों भर जल
यह बात गलत है मैं उससे थोड़ी भी प्यास बुझा न सका
आँखें खोलीं, तुम बड़े हुए
जग के पैरों पर खड़े हुए
दुनिया के कब कुछ फुर्सत दी
नख-शिख तक तुम्हें निरखने की
रह गया अपरिचित मैं तुमसे, अपना परिचय दुहरा न सका