"गूगल अर्थ पर गाँव / सत्यनारायण सोनी" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=सत्यनारायण सोनी | |रचनाकार=सत्यनारायण सोनी | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=कवि होने की ज़िद में / सत्यनारायण सोनी |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} |
01:06, 22 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
गूगल अर्थ पर
गाँव खोजकर
बड़ी ख़ुश हुई बिटिया
खिल गई बाँछें
और एक ही किलक ने उसकी
बुला लिया
रसोईघर में आटा गूँधती माँ को ।
लिथड़े हाथों माँ ने उसकी
देखा बड़े कौतूहल से
पूरा का पूरा गाँव ।
गली, तालाब, स्कूल अपना मौहल्ला और
देख लिया घर भी अपना ।
बोली बिटिया-
इस पर दुनिया का हर गाँव,
गली, बाज़ार, दरख़्त, खेत, समुद्र
सब दिख जाता है साफ़-साफ़ ।
बड़ी जिज्ञासा और उमंग भर दिल में अपने
पूछा उसकी माँ ने-
नानी का गाँव, घर भी दिखला देगी?
माथापच्ची करते-करते
खोज निकाला जब बिटिया ने
तो हर्ष का पार नहीं रहा और
बैठ गई निकट ही खाट पर,
गड़ा दीं नज़रें
कम्प्यूटर स्क्रीन पर ।
यह बस-अड्डा, यह गली, यह चौगान
और चौगान में
इस दरख़्त के पास वाला
बड़ा-सा यह घर.....
देर तक निहारती रही बिटिया की माँ
फिर टपक पड़ी दो बूँद
आँखों से उसकी,
जिनमें अब तक थी
एक सुनहरी चमक ।
नानी के घर में होती
काश तेरी नानी भी पर...
रुंध गया गला और कह पाई
बस एक कहावत अपनी भाषा में
सुना था जिसे कभी माँ से अपनी-
'सासू बिना किस्यो सासरो
अर माँ बिना किस्यो पी'र'।