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"जूड़ा के फूल / अनुज लुगुन" के अवतरणों में अंतर
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− | + | हमारे जूड़ों में | |
− | + | नहीं शोभते इसके फूल, | |
− | + | हमारी घने | |
− | + | काले जूड़ों में शोभते हैं | |
− | + | जंगल के फूल | |
− | + | जंगली फूलों से ही | |
− | + | हमारी जूड़ों का सार है, | |
− | + | काले बादलों के बीच | |
− | + | पूर्णिमा की चाँद की तरह | |
− | + | ये मुस्काराते हैं । | |
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00:05, 27 जनवरी 2013 का अवतरण
छोड़ दो हमारी ज़मीन पर
अपनी भाषा की खेती करना
हमारे जूड़ों में
नहीं शोभते इसके फूल,
हमारी घने
काले जूड़ों में शोभते हैं
जंगल के फूल
जंगली फूलों से ही
हमारी जूड़ों का सार है,
काले बादलों के बीच
पूर्णिमा की चाँद की तरह
ये मुस्काराते हैं ।