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"शमशेर की कविता / दिविक रमेश" के अवतरणों में अंतर
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दरअसल | दरअसल | ||
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शरीर र्में जैसे | शरीर र्में जैसे | ||
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हर चीज़ अपनी जगह है | हर चीज़ अपनी जगह है | ||
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देखो | देखो | ||
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शब्द समझ | शब्द समझ | ||
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कहीं पाँव न रख देना | कहीं पाँव न रख देना | ||
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माँ ने माटी से | माँ ने माटी से | ||
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अभी-अभी लीपा है | अभी-अभी लीपा है | ||
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शमशेर की कविता है। | शमशेर की कविता है। | ||
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21:13, 17 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण
छुइए
मगर हौले से
कि यह कविता
शमशेर की है ।
और यह जो
एक-आध पाँखुरी
बिखरी
सी
पड़ी
है
न?
इसे भी
न हिलाना ।
बहुत मुमकिन है
किसी मूड में
शमशेर ने ही
इसे ऐसे रक्खा हो ।
दरअसल
शरीर र्में जैसे
हर चीज़ अपनी जगह है
शमशेर की कविता है ।
देखो
शब्द समझ
कहीं पाँव न रख देना
अभी गीली है
जैसे आँगन
माँ ने माटी से
अभी-अभी लीपा है
शमशेर की कविता है।