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"दारिद्र को जारन को नहीं आयो / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर
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जाय यो काज तो तुच्छ सरायो । | जाय यो काज तो तुच्छ सरायो । | ||
केसरी पुत्र कछु न करी अहो ! | केसरी पुत्र कछु न करी अहो ! | ||
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त्रिभुवन नाथ मदन को जारि के, | त्रिभुवन नाथ मदन को जारि के, | ||
लोक आनन्द को दूर दुरायो । | लोक आनन्द को दूर दुरायो । |
10:22, 19 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण
अर्जुन दग्ध कियो वन खाण्डव,
जाय यो काज तो तुच्छ सरायो ।
केसरी पुत्र कछु न करी अहो !
स्वर्ण की लंक को जाय जरायो ।
त्रिभुवन नाथ मदन को जारि के,
लोक आनन्द को दूर दुरायो ।
सब जन के मन में ताप करे,
रे ! दारिद्र को जारन को नहीं आयो ।