"अपराधी / प्रतिभा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिभा सक्सेना }} {{KKCatKavita}} <poem> बिगाड...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:12, 8 मार्च 2013 के समय का अवतरण
बिगाड़ना बहुत आसान है -
उसके लिये जो बना नहीं सकता!
पशुबल सबसे प्रबल है,
कि विवेक से नाता नहीं रखता,
जुनून जो कर ड़ाले,
भविष्य पछताता है जीवन भर!
पर यह देख कर भी जो तटस्थ बना रहे,
सबसे बड़ा अपराधी है!
ओ धरती के स्वर्ग,
दुख तो यह है कि तुझे दग़ा दिया अपनों ने!
तेरी ही बेटियों का रास्ता बन्द कर,
जीवन भर को वञ्चित कर दिया,
तेरी नेह भरी गोद से!
लुटे-पिटे,वञ्चित तेरे पुत्र,
दर-दर ठोकरें खाते भटक रहे हैं!
इन द्विधाग्रस्त लोगों ने,
अपनो को निकाल,
पराई घुस-पैठ का रास्ता साफ़ कर दिया!
माँ के जवान बेटों ने
अपने प्राणों का मोल दे
जो जीता था,
ये दब्बू, स्वार्थी, कृतघ्न प्राणी,
थाली में परोस उन्हीं हत्यारों को पेश कर आये -
कि लो यह खून फ़ालतू है,
बहता रहे क्या फ़र्क पड़ता है?
सब चौपट कर दिया!
माँ की छाती मे घूँसा मार,
एक स्थायी दर्द दे दिया,
एक रिसता घाव
जो हमेशा टीसता रहेगा!
अगली पीढ़ियाँ क्या माफ़ कर सकेंगी कभी?