भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रश्न / प्रतिभा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिभा सक्सेना }} {{KKCatKavita}} <poem> जब अपन...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:33, 8 मार्च 2013 के समय का अवतरण
जब अपने से छोटे,
और उनसे भी छोटे
रुख़सत हो,
निकलते चले जाते हैं सामने से
एक-एक कर,
अपना जीवन अपराध लगता है
जब वंचित रह जाते हैं लोग,
उस सबसे जो हमने पाया
तरसते देख गुनाह लगती हैं-
अपनी सुख-सुविधायें,
कि दूसरे का हिस्सा
हम दबाये बैठे हैं
अपनी सारी क्षमतायें बेकार
कि अब कौन सी सार्थकता
बाकी रह गई?
भाग्यशाली हैं वे,
जो जीवन-मृत्यु को
सही सम्मान दे,
समय से प्रस्थान कर जाते हैं