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13:03, 23 मार्च 2013 के समय का अवतरण

बेहतर होगा की टूट जाएँ
बंधन रगों में दौड़ती हुई
गुमनाम भाषा के
रेगिस्तानी सम्बन्धों के
लेकिन, इच्छाओं की हवा पर
मैं दौड़ूँ जरूर तुम्हारी आवाज़ पर

मेरी दिशा में
सिंदूरी रंग से लिखा मिलेगा तुमको
इक नयी इबारत का
लहराता हुआ ख़त

इक समुंदर की तरह
गहराई तक मैं ढूँढ़ती रही हूँ
मोती से भरी सीपियाँ
फिर भी
आँगन में झरती हैं रात-रात भर ओस

हरी चूड़ियों के रंग सा हरापन
दौड़ता है, मेरी रगो में
जैसे मैं चाहती हूँ
दौड़ना तुम्हारी आवाज़ पर