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दिल और दिमाग
की कशमकश में
कभी दिल जीतता है
तो कभी दिमाग
पर पिसता सिर्फ दिल ही है
और दाँव पर लगती है देह
छिन्न-भिन्न होता है वक्त
बिखरती है जिंदगी
और हाथ से फिसल जाती है
एक और पतंग
और लटकी हुई उसकी डोर