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− | + | हरी हो रही धूप | |
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19:43, 30 मार्च 2013 का अवतरण
उनये उनये भादरे
रचनाकार: नामवर सिंह
उनये उनये भादरे
बरखा की जल चादरें
फूल दीप से जले
कि झरती पुरवैया सी याद रे
मन कुयें के कोहरे सा रवि डूबे के बाद रे ।
भादरे ।
उठे बगूले घास में
चढ़ता रंग बतास में
हरी हो रही धूप
नशे-सी चढ़ती झुके अकास में
तिरती हैं परछाइयाँ सीने के भींगे चास में ।
घास में ।