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"मेरी कुण्ठा / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

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औ' वीणा से कहती-सुनती,
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गर्भवती है
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मेरी कुंठा – कुँवारी कुंती!
  
मेरी कुंठा<br>
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बाहर आने दूँ
रेशम के कीड़ों सी<br>
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तो लोक-लाज-मर्यादा
ताने-बाने बुनती,<br>
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तड़प-तड़पकर<br>
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बाहर आने को सिर धुनती,<br>
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मेरा यह व्यक्तित्व
स्वर से<br>
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भीतर रहने दूँ<br>
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तो घुटन, सहन से ज़्यादा,<br>
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मेरा यह व्यक्तित्व<br>
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सिमटने पर आमादा ।
 
सिमटने पर आमादा ।

11:53, 1 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

  

मेरी कुंठा
रेशम के कीड़ों सी
ताने-बाने बुनती
तड़प-तड़पकर
बाहर आने को सिर धुनती,
स्वर से
शब्दों से
भावों से
औ' वीणा से कहती-सुनती,
गर्भवती है
मेरी कुंठा – कुँवारी कुंती!

बाहर आने दूँ
तो लोक-लाज-मर्यादा
भीतर रहने दूँ
तो घुटन, सहन से ज़्यादा,
मेरा यह व्यक्तित्व
सिमटने पर आमादा ।