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"मैं तुझे फिर मिलूँगी / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर

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या सूरज की लौ बन कर
 
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तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
 
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो कि बाँहों में बैठ कर
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या रंगो की बाँहों में बैठ कर
 
तेरे कैनवास पर बिछ जाउँगी
 
तेरे कैनवास पर बिछ जाउँगी
 
पता नहीं कहाँ किस तरह
 
पता नहीं कहाँ किस तरह
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पर यादों के धागे
 
पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें कि तरह होते हैं
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मैं उन लम्हों को चुनूँगी
 
मैं उन लम्हों को चुनूँगी

12:22, 15 अप्रैल 2013 का अवतरण

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मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं

या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे कैनवास पर बिछ जाउँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी

या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूँदें
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगी

मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है

पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं

मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेत लुंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
मैं तुझे फिर मिलूँगी !!