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"भेड़ / तुलसी रमण" के अवतरणों में अंतर

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कैंची चलाकर
 
कैंची चलाकर
 
ऊन उतार लो उसकी
 
ऊन उतार लो उसकी
 
 
और फिर से
 
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एक अर्से के लिये
 
एक अर्से के लिये
 
ऊबड़-खाबड़ गहन निर्जन में
 
ऊबड़-खाबड़ गहन निर्जन में
 
नंगा कर छोड़ दो
 
नंगा कर छोड़ दो
 
 
जहाँ रहते हैं
 
जहाँ रहते हैं
 
असंख्य भेड़िये और  
 
असंख्य भेड़िये और  

09:50, 26 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

बुज़ुर्गों का कहना है
जब भेड़ मूंडनी हो
उससे पूछा नहीं जाता

दो चार हरी पत्तियां
रोटी का एक ग्रास
या चंद दाने दिखाकर
एक सछल, शरारती पुचकार के साथ,
करीब बुला लिया जाता है उसे
और वह निरीह
सहज चली आती है

बस
सुविधाजनक ढंग से
कैंची चलाकर
ऊन उतार लो उसकी
और फिर से
एक अर्से के लिये
ऊबड़-खाबड़ गहन निर्जन में
नंगा कर छोड़ दो
जहाँ रहते हैं
असंख्य भेड़िये और
भेड़िये के बच्चे
उसके ख़ून की ताक में

सिंहासन सजते हैं
भेड़ की ऊन से
राजतिलक भी होता है
भेड़ के खून से
पर निरीह भेड़ ठगी-सी
बस ऊन होती है
या ख़ून।