भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कभी धूप कभी छाँव / प्रदीप" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप }} <poem> सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है व...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=प्रदीप
 
|रचनाकार=प्रदीप
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव
 
सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव

09:23, 28 जून 2013 के समय का अवतरण

सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव
भले भी दिन आते जगत में, बुरे भी दिन आते
कड़वे मीठे फल करम के यहाँ सभी पाते
कभी सीधे कभी उल्टे पड़ते अजब समय के पाँव
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव
सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव

क्या खुशियाँ क्या गम, यह सब मिलते बारी बारी
मालिक की मर्ज़ी पे चलती यह दुनिया सारी
ध्यान से खेना जग नदिया में बन्दे अपनी नाव
कभी धूप कभी छाँव, कभी धूप तो कभी छाँव
सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव