"मदनाष्टक / रहीम" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रहीम }} <poem> १. फलित ललित माला वा जव...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | शरद-निशि निशीथे चाँद की रोशनाई । | |
− | फलित ललित माला वा जवाहिर जड़ा था | + | सघन वन निकुंजे वंशी बजाई ।। |
− | चपल चखन वाला चान्दनी में खड़ा था | + | रति, पति, सुत, निद्रा, साइयाँ छोड़ भागी । |
− | कटि तट बिच मेला पीत सेला | + | मदन-शिरसि भूय: क्या बला आन लागी ।।1।। |
− | अली, बन अलबेला यार मेरा अकेला | + | |
+ | कलित ललित माला या जवाहिर जड़ा था । | ||
+ | चपल चखन वाला चाँदनी में खड़ा था ।। | ||
+ | कटि-तट बिच मेला पीत सेला नवेला । | ||
+ | अलि बन अलबेला यार मेरा अकेला ।।2।। | ||
+ | |||
+ | दृग छकित छबीली छैलरा की छरी थी । | ||
+ | मणि जटित रसीली माधुरी मूँदरी थी ।। | ||
+ | अमल कमल ऐसा खूब से खूब देखा । | ||
+ | कहि सकत न जैसा श्याम का हस्त देखा ।।3।। | ||
+ | |||
+ | कठिन कुटिल कारी देख दिलदार जुलफे । | ||
+ | अलि कलित बिहारी आपने जी की कुलफें ।। | ||
+ | सकल शशिकला को रोशनी-हीन लेखौं । | ||
+ | अहह! ब्रजलला को किस तरह फेर देखौं ।।4।। | ||
+ | |||
+ | ज़रद बसन-वाला गुल चमन देखता था । | ||
+ | झुक झुक मतवाला गावता रेखता था ।। | ||
+ | श्रुति युग चपला से कुण्डलें झूमते थे । | ||
+ | नयन कर तमाशे मस्त ह्वै घूमते थे ।।5।। | ||
+ | |||
+ | तरल तरनि सी हैं तीर सी नोकदारैं । | ||
+ | अमल कमल सी हैं दीर्घ हैं दिल बिदारैं ।। | ||
+ | मधुर मधुप हेरैं माल मस्ती न राखें । | ||
+ | विलसति मन मेरे सुंदरी श्याम आँखें ।।6।। | ||
+ | |||
+ | भुजंग जुग किधौं हैं काम कमनैत सोहैं । | ||
+ | नटवर! तव मोहैं बाँकुरी मान भौंहें ।। | ||
+ | सुनु सखि! मृदु बानी बेदुरुस्ती अकिल में । | ||
+ | सरल सरल सानी कै गई सार दिल में ।।7।। | ||
+ | |||
+ | पकरि परम प्यारे साँवरे को मिलाओ । | ||
+ | असल समृत प्याला क्यों न मुझको पिलाओ ।। | ||
+ | इति वदति पठानी मनमथांगी विरागी । | ||
+ | मदन शिरसि भूय; क्या बला आन लागी ।।8।। | ||
+ | |||
+ | फलित ललित माला वा जवाहिर जड़ा था । | ||
+ | चपल चखन वाला चान्दनी में खड़ा था ।। | ||
+ | कटि तट बिच मेला पीत सेला नवेला। | ||
+ | अली, बन अलबेला यार मेरा अकेला ।।9।। | ||
<poem> | <poem> |
20:06, 28 जून 2013 का अवतरण
शरद-निशि निशीथे चाँद की रोशनाई ।
सघन वन निकुंजे वंशी बजाई ।।
रति, पति, सुत, निद्रा, साइयाँ छोड़ भागी ।
मदन-शिरसि भूय: क्या बला आन लागी ।।1।।
कलित ललित माला या जवाहिर जड़ा था ।
चपल चखन वाला चाँदनी में खड़ा था ।।
कटि-तट बिच मेला पीत सेला नवेला ।
अलि बन अलबेला यार मेरा अकेला ।।2।।
दृग छकित छबीली छैलरा की छरी थी ।
मणि जटित रसीली माधुरी मूँदरी थी ।।
अमल कमल ऐसा खूब से खूब देखा ।
कहि सकत न जैसा श्याम का हस्त देखा ।।3।।
कठिन कुटिल कारी देख दिलदार जुलफे ।
अलि कलित बिहारी आपने जी की कुलफें ।।
सकल शशिकला को रोशनी-हीन लेखौं ।
अहह! ब्रजलला को किस तरह फेर देखौं ।।4।।
ज़रद बसन-वाला गुल चमन देखता था ।
झुक झुक मतवाला गावता रेखता था ।।
श्रुति युग चपला से कुण्डलें झूमते थे ।
नयन कर तमाशे मस्त ह्वै घूमते थे ।।5।।
तरल तरनि सी हैं तीर सी नोकदारैं ।
अमल कमल सी हैं दीर्घ हैं दिल बिदारैं ।।
मधुर मधुप हेरैं माल मस्ती न राखें ।
विलसति मन मेरे सुंदरी श्याम आँखें ।।6।।
भुजंग जुग किधौं हैं काम कमनैत सोहैं ।
नटवर! तव मोहैं बाँकुरी मान भौंहें ।।
सुनु सखि! मृदु बानी बेदुरुस्ती अकिल में ।
सरल सरल सानी कै गई सार दिल में ।।7।।
पकरि परम प्यारे साँवरे को मिलाओ ।
असल समृत प्याला क्यों न मुझको पिलाओ ।।
इति वदति पठानी मनमथांगी विरागी ।
मदन शिरसि भूय; क्या बला आन लागी ।।8।।
फलित ललित माला वा जवाहिर जड़ा था ।
चपल चखन वाला चान्दनी में खड़ा था ।।
कटि तट बिच मेला पीत सेला नवेला।
अली, बन अलबेला यार मेरा अकेला ।।9।।