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"विश्‍वास / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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पंथ जीवन का चुनौती
 
पंथ जीवन का चुनौती
 
 
दे रहा है हर कदम पर,
 
दे रहा है हर कदम पर,
 
 
आखिरी मंजिल नहीं होती
 
आखिरी मंजिल नहीं होती
 
 
कहीं भी दृष्टिगोचर,
 
कहीं भी दृष्टिगोचर,
 
 
धूलि में लद, स्‍वेद में सिंच
 
धूलि में लद, स्‍वेद में सिंच
 
 
हो गई है देह भारी,
 
हो गई है देह भारी,
 
 
कौन-सा विश्‍वास मुझको
 
कौन-सा विश्‍वास मुझको
 
 
खींचता जाता निरंतर?-
 
खींचता जाता निरंतर?-
 
 
पंथ क्‍या, पंथ की थकान क्‍या,
 
पंथ क्‍या, पंथ की थकान क्‍या,
 
 
स्‍वेद कण क्‍या,
 
स्‍वेद कण क्‍या,
 
 
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं।
 
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं।
 
  
 
एक भी संदेश आशा
 
एक भी संदेश आशा
 
 
का नहीं देते सितारे,
 
का नहीं देते सितारे,
 
 
प्रकृति ने मंगल शकुन पथ
 
प्रकृति ने मंगल शकुन पथ
 
 
में नहीं मेरे सँवारे,
 
में नहीं मेरे सँवारे,
 
 
विश्‍व का उत्‍साहवर्धक
 
विश्‍व का उत्‍साहवर्धक
 
 
शब्‍द भी मैंने सुना कब,
 
शब्‍द भी मैंने सुना कब,
 
 
किंतु बढ़ता जा रहा हूँ
 
किंतु बढ़ता जा रहा हूँ
 
 
लक्ष्‍य पर किसके सहारे?-
 
लक्ष्‍य पर किसके सहारे?-
 
 
विश्‍व की अवहेलना क्‍या,
 
विश्‍व की अवहेलना क्‍या,
 
 
अपशकुन क्‍या,
 
अपशकुन क्‍या,
 
 
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं।
 
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं।
 
  
 
चल रहा है पर पहुँचना
 
चल रहा है पर पहुँचना
 
 
लक्ष्‍य पर इसका अनिश्चित,
 
लक्ष्‍य पर इसका अनिश्चित,
 
 
कर्म कर भी कर्म फल से
 
कर्म कर भी कर्म फल से
 
 
यदि रहा यह पांथ वंचित,
 
यदि रहा यह पांथ वंचित,
 
 
विश्‍व तो उस पर हँसेगा
 
विश्‍व तो उस पर हँसेगा
 
 
खूब भूला, खूब भटका!
 
खूब भूला, खूब भटका!
 
 
किंतु गा यह पंक्तियाँ दो
 
किंतु गा यह पंक्तियाँ दो
 
 
वह करेगा धैर्य संचित-
 
वह करेगा धैर्य संचित-
 
 
व्‍यर्थ जीवन, व्‍यर्थ जीवन,
 
व्‍यर्थ जीवन, व्‍यर्थ जीवन,
 
 
की लगन क्‍या,
 
की लगन क्‍या,
 
 
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!
 
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!
 
  
 
अब नहीं उस पार का भी
 
अब नहीं उस पार का भी
 
 
भय मुझे कुछ भी सताता,
 
भय मुझे कुछ भी सताता,
 
 
उस तरु के लोक से भी
 
उस तरु के लोक से भी
 
 
जुड़ चुका है मेरा नाता,
 
जुड़ चुका है मेरा नाता,
 
 
मैं उसे भूला नहीं तो
 
मैं उसे भूला नहीं तो
 
 
वह नहीं भूली मुझे भी,
 
वह नहीं भूली मुझे भी,
 
 
मृत्‍यु-पथ पर भी बढ़ूँगा
 
मृत्‍यु-पथ पर भी बढ़ूँगा
 
 
मोद से यह गुनगुनाता-
 
मोद से यह गुनगुनाता-
 
 
अंत यौवन, अंत जीपन
 
अंत यौवन, अंत जीपन
 
 
का मरण क्‍या,
 
का मरण क्‍या,
 
 
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!
 
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!

09:12, 2 जुलाई 2013 का अवतरण

पंथ जीवन का चुनौती
दे रहा है हर कदम पर,
आखिरी मंजिल नहीं होती
कहीं भी दृष्टिगोचर,
धूलि में लद, स्‍वेद में सिंच
हो गई है देह भारी,
कौन-सा विश्‍वास मुझको
खींचता जाता निरंतर?-
पंथ क्‍या, पंथ की थकान क्‍या,
स्‍वेद कण क्‍या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं।

एक भी संदेश आशा
का नहीं देते सितारे,
प्रकृति ने मंगल शकुन पथ
में नहीं मेरे सँवारे,
विश्‍व का उत्‍साहवर्धक
शब्‍द भी मैंने सुना कब,
किंतु बढ़ता जा रहा हूँ
लक्ष्‍य पर किसके सहारे?-
विश्‍व की अवहेलना क्‍या,
अपशकुन क्‍या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं।

चल रहा है पर पहुँचना
लक्ष्‍य पर इसका अनिश्चित,
कर्म कर भी कर्म फल से
यदि रहा यह पांथ वंचित,
विश्‍व तो उस पर हँसेगा
खूब भूला, खूब भटका!
किंतु गा यह पंक्तियाँ दो
वह करेगा धैर्य संचित-
व्‍यर्थ जीवन, व्‍यर्थ जीवन,
की लगन क्‍या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!

अब नहीं उस पार का भी
भय मुझे कुछ भी सताता,
उस तरु के लोक से भी
जुड़ चुका है मेरा नाता,
मैं उसे भूला नहीं तो
वह नहीं भूली मुझे भी,
मृत्‍यु-पथ पर भी बढ़ूँगा
मोद से यह गुनगुनाता-
अंत यौवन, अंत जीपन
का मरण क्‍या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!