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"अहसास का घर / कन्हैयालाल नंदन" के अवतरणों में अंतर

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जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।<br><br>
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मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।
  
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जिंदगी चाहिए मुझको मानी* भरी,
उन दुआओं का मुझपे असर चाहिए।<br><br>
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चाहे कितनी भी हो मुख्तसर, चाहिए।
  
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लाख उसको अमल में न लाऊँ कभी,
मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।<br><br>
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शानोशौकत का सामाँ मगर चाहिए।
  
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चाहे कितनी भी हो मुख्तसर, चाहिए।<br><br>
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तो कहीं एक तो चश्मेतर* चाहिए।
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*- सार्थक
  
लाख उसको अमल में न लाऊँ कभी,<br>
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शानोशौकत का सामाँ मगर चाहिए।<br><br>
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जब मुसीबत पड़े और भारी पड़े,<br>
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तो कहीं एक तो चश्मेतर** चाहिए।<br><br>
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*- सार्थक<br><br>
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**-नम आँख<br><br>
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09:58, 4 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए,
मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।

मैंने मांगी दुआएँ, दुआएँ मिलीं
उन दुआओं का मुझपे असर चाहिए।

जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।

जिंदगी चाहिए मुझको मानी* भरी,
चाहे कितनी भी हो मुख्तसर, चाहिए।

लाख उसको अमल में न लाऊँ कभी,
शानोशौकत का सामाँ मगर चाहिए।

जब मुसीबत पड़े और भारी पड़े,
तो कहीं एक तो चश्मेतर* चाहिए।

  • - सार्थक
  • -नम आँख