भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पत्ते पत्ते पर शबनम / सुधेश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधेश }} {{KKCatGeet}} <poem> पत्ते पत्ते पर शब...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
पत्ते पत्ते पर शबनम है  
 
पत्ते पत्ते पर शबनम है  
 
           कली कली की आँखें नम हैं  
 
           कली कली की आँखें नम हैं  
           क्या कोई खुल कर रोया है रात मे ?  
+
           क्या कोई खुल कर रोया है रात में ?  
 
भीगी भीगी सुबह सुहानी  
 
भीगी भीगी सुबह सुहानी  
 
पल में शबनम उड़ जाएगी  
 
पल में शबनम उड़ जाएगी  

12:33, 8 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

पत्ते पत्ते पर शबनम है
          कली कली की आँखें नम हैं
          क्या कोई खुल कर रोया है रात में ?
भीगी भीगी सुबह सुहानी
पल में शबनम उड़ जाएगी
कलियों के घूँघट में ख़ुश्बू
पवन हिंडोले चढ जाएगी ।
         दिन का नाम दूसरा हलचल
         बहरा कर देगा कोलाहल
         ऐसे में क्या रक्खा है बात में !
बाहर काला धुँआ धुँआ है
कैसी जलन सिन्धु के तल में
सारा दिन तपता रहता है
आग छिपी सूरज के दिल में ।
         घटा घटा छाई मस्ती है
         बिजली भी चम चम हंसती है
          लेकिन क्यों बादल रोया बरसात में?
संझा की आहट पर आख़िर
दिन के यौवन को ढलना है
स्नेह न हो दीपक में फिर भी
जीवन बाती को जलना है ।
          जुगनू राह दिखाने आये
           झिंगुर ने भी गीत सुनाए
           चन्दा ग़ायब तारों की बारात में ।