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"बारहमासा / विद्यापति" के अवतरणों में अंतर

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साओनर साज ने भादवक दही।
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आसिनक ओस ने कार्तिकक मही।।
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अगहनक जीर ने पुषक धनी।
 +
माधक मीसरी ने फागुनक चना।।
 +
चैतक गुड़ ने बैसाखक तेल।
 +
जेठक चलब ने अषाढ़क बेल।।
 +
कहे धन्वन्तरि अहि सबसँ बचे।
 +
त वैदराज काहे पुरिया रचे।।
  
साओनर साज ने भादवक दही।<br>
+
चानन रगड़ि सुहागिनी हे गेले फूलक हार।
आसिनक ओस ने कार्तिकक मही।।<br>
+
सेनुरा सँ संगिया भरल अछि हे सुख मास अषाढ़।।
अगहनक जीर ने पुषक धनी।<br>
+
राजा गेलाह मृग मारन हे वन गेलाह शिकार।
माधक मीसरी ने फागुनक चना।।<br>
+
जोगी एक ठाढ़ अंगना में हे रानी सुनि लीय बात हमार।।
चैतक गुड़ ने बैसाखक तेल।<br>
+
द दिय भीक्षा जोगी के हे ओ त छोड़ता द्वार।।
जेठक चलब ने अषाढ़क बेल।।<br>
+
सावन बड़ा सुख दावन हे दु:ख सहलो ने जाय।
कहे धन्वन्तरि अहि सबसँ बचे।<br>
+
इहो दुख होइहन्डु रानी कुब्जी के जो कन्त रखली लोभाय।।
वैदराज काहे पुरिया रचे।।<br><br>
+
भादब भरम भयावन हे गरजै ढ़हनाय
 +
सबके बलम देखि घर में हे ककरा संग जाय
 +
आसिन कुमर आबि गेल हे कि ओ आब ने जिथि
 +
चीढ्ढी में लीखल वियोगिया हे हजमा हाथे देब
 +
कातिक परबहिं लागि गेल हे गोरी-गंगा-स्नान
 +
गंगा नहाय लट झारलऊँ हे सीथ लागे उदास
 +
अगहन सारी लबीय गेल हे फुटि गेल सब रंग धान
 +
प्रभुजी त छथि परदेसिया हे कियो भोगत आन
 +
पुसहिं ओसहिं गिड़ि गेल हे भीजि गेल लाम्बी-लाम्बी केस
 +
केसब सुखाबी ओसरबा हे सीथ लागे उदास
 +
माघहि मास चतुर्दशी हे शीब-ब्रत तोहार
 +
घुमि-फिरि अचलऊँ मन्दिरबा हे चित लागय उदास
 +
फागुन फगुआ खेलबितऊँ हे निरमोहिया के साथ
 +
प्रभुजी के हाथ पीचकारी हे उड़िते अतरी गुलाब
 +
चैतहिं बेली फूलाय गेल हे फूलि गेल कुसुम गुलाब
 +
फूलबा के हार गुथबितहुँ हे भेजितऊँ प्रभु के सनेश
 +
वैसाखहिं बंसबा कटबितऊँ हे रचि बंगला छेबाय
 +
ओहि दे बंगला बीच सुतितऊँ हे रसबेनिया डोलाय
 +
जेठहिं मास भेंट भा गोल हे पिरि गेल बारह मास
 +
प्रभुजी एला जगरनाथ हे कन्त लीय समुझाय।।
  
 +
चैत मास गृह अयोध्या त्यागल हानि से भीपति परी
 +
अलख निरञ्जन पार उतरि गेल तपसी के वेश धरी
 +
हो विकल रघुलाथ भये...
 +
कहाँ विलमस हनुमान विकल रघुलाथ भये।
 +
धूप-दीप बिनु मन्दिर सुन्न भैल मास बैसाख चढ़ी
 +
सीमा बीना मन्दिर भेल सुना बन बीच कुहकि रही
 +
कहाँ विलमल हनुमान...
 +
जेठ वान लगे लछमन के धरनी से मरक्षि खसी
 +
वैद्य सुखेन बताबय श्रीजमणि तब लछमन उबरी
 +
हो विकल रघुनाथ भये...
 +
कहाँ विलमल हनुमान...
 +
राम सुमरि बीड़ापान उठायल धवलगिरि चली
 +
मास अषाढ़ घटा-घन घहरे राम सुमरिक चली
 +
हो विकल रघुनाथ भये...
 +
कहाँ विलमल हनुमान...
 +
साबन सर्व सुहावन रघुबन सजमनि लेख न पटी
 +
दामिनि दमके तरस दिखाबे जब मोन सब घबरी
 +
हो विकल रघुनाथ भये...
 +
कहाँ विलमल हनुमान...
 +
भादब परबत भोर उखारल बुन्दक मार परी
 +
निसि अन्धयारी पंथ नहिं सूझल राम सुमरि क चली
 +
हो विकल रघुनाथ भये...
 +
कहाँ विलमल हनुमान...
 +
आसिन मास देखे रघुबर जी देखि लथुमन हहरी
 +
सीता सोचती सोचे रघुबरजी लछुमन सुधि बिसरी
 +
हो विकल रघुनाथ...
 +
कहाँ विलमल हनुमान...
 +
अगहन रघुबर आशिष मांगथि हर्षित सब भई
 +
ओहि अबसर अञ्जनिसुत अचला सब मोन हर्षित भई
 +
हो विकल रघुनाथ भये...
 +
कहाँ विलमल हनुमान...
  
चानन रगड़ि सुहागिनी हे गेले फूलक हार।<br>
+
अगहन दिन उत्तम सुख-सुन्दर घर-घर सारी समाय
सेनुरा सँ संगिया भरल अछि हे सुख मास अषाढ़।।<br>
+
रतन बयस सँ मोन सुख सुन्दर से छोड़ने कोना जायव
राजा गेलाह मृग मारन हे वन गेलाह शिकार।<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
जोगी एक ठाढ़ अंगना में हे रानी सुनि लीय बात हमार।।<br>
+
पूष कोठलिया ऊँच अटरिया, तकिया तुराय
द दिय भीक्षा जोगी के हे ओ त छोड़ता द्वार।।<br>
+
अतर, गुलाब, सेन्ट गमकायब अतेक मजा कहाँ पाएब
सावन बड़ा सुख दावन हे दु:ख सहलो ने जाय।<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
इहो दुख होइहन्डु रानी कुब्जी के जो कन्त रखली लोभाय।।<br>
+
माधक सेला सचे हूमेला जैब बिदेसर धाम
भादब भरम भयावन हे गरजै ढ़हनाय<br>
+
पान सुपारी जरदा खाएब घुमब शहर बजार
सबके बलम देखि घर में हे ककरा संग जाय<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
आसिन कुमर आबि गेल हे कि ओ आब ने जिथि<br>
+
फागून फगुआ दूनू मिली खेलब घोरब रंग अबीर
चीढ्ढी में लीखल वियोगिया हे हजमा हाथे देब<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
कातिक परबहिं लागि गेल हे गोरी-गंगा-स्नान<br>
+
अतर गुलाब, सेन्ट गमकाएब घोटि-घोटि धारब अबीर
गंगा नहाय लट झारलऊँ हे सीथ लागे उदास<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
अगहन सारी लबीय गेल हे फुटि गेल सब रंग धान<br>
+
चैतहिं बेली फुलय बनबेली, अद फुलय कचनार
प्रभुजी त छथि परदेसिया हे कियो भोगत आन<br>
+
सेहो फूल लोढि-लोढि हार बुनाएब भेजब पीयाजी के पास
पुसहिं ओसहिं गिड़ि गेल हे भीजि गेल लाम्बी-लाम्बी केस<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
केसब सुखाबी ओसरबा हे सीथ लागे उदास<br>
+
बैसाखक ज्वाला करे मोन ब्योला सोने मुढी बेनिया डोलारब
माघहि मास चतुर्दशी हे शीब-ब्रत तोहार<br>
+
कोमल हाथ सँ बेनिया डोलाएब अतेक मजा कहाँ पाएब
घुमि-फिरि अचलऊँ मन्दिरबा हे चित लागय उदास<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
फागुन फगुआ खेलबितऊँ हे निरमोहिया के साथ<br>
+
जेठहिं कान्त कतय गमाओल आयल अषाढ़क मास
प्रभुजी के हाथ पीचकारी हे उड़िते अतरी गुलाब<br>
+
लाल रे पलंगिया घरहिं ओछाएब सेवा करब अपार
चैतहिं बेली फूलाय गेल हे फूलि गेल कुसुम गुलाब<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
फूलबा के हार गुथबितहुँ हे भेजितऊँ प्रभु के सनेश<br>
+
सावन-भादब के मेघबा गरजै जुनि मेघ बरसु आजु
वैसाखहिं बंसबा कटबितऊँ हे रचि बंगला छेबाय<br>
+
कोना क बालमु पार उतरताह नै रे नाव करुआर
ओहि दे बंगला बीच सुतितऊँ हे रसबेनिया डोलाय<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
जेठहिं मास भेंट भा गोल हे पिरि गेल बारह मास<br>
+
आसिन-कातिक के पर्व लगतु हैं सब सखी गंगा-स्नान
प्रभुजी त एला जगरनाथ हे कन्त लीय समुझाय।।<br><br>
+
बिना बालमुजी के नीको ने लागय
 +
पुरि गेल बारह मास
 +
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
  
 +
चोआ चानन अंग लगाओल कामीनि कायल किंशगार
 +
जे दिन मोहन मधउपुर गेलाह से दिन मास
 +
अखाढ़ रे कन्हैया के मनाय ने दीप...
 +
उधो बारि रे बयस बीतल जाय
 +
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
 +
एक त गोरी बारी बयसिया
 +
दोसर पीया परदेशिया
 +
तेसर बून्द झलामलि बरसै
 +
साबन अधिक कलेश
 +
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
 +
भादब हे सखी मरम भयाबन
 +
दोसर राति अन्हार
 +
लाका लौके बीजुरी चमके
 +
ककरा मड़ैया हैब ठाढ़
 +
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
 +
आसिन हे सखि आस लगाओल
 +
आस ने पुरल हमार
 +
आसो जे पुरलन्हि कुब्जी सौतिनियाँ के
 +
जे पाहुन रखल हमार
 +
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
 +
कातिक हे सखी पर्व लगत है
 +
सब सखी गंगास्नान
 +
सब सखी मीली गंगा नहाबीय
 +
बीना पीया पर्व उदास
 +
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
 +
अगहन हे सखी सारी लबीय गेल
 +
लबि गेल लोचन मोर
 +
चिदई-चुनमुन सुखहिं खेपय
 +
हम धनी बीरहा के मात
 +
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
 +
पुंसहिं हे सखी ओस खसथु हैं
 +
भीजी गेल लाम्बी केस
 +
सब रे सखी मीली सीरक भरेलऊँ
 +
बीनु पीया जारो ने जाय
 +
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
 +
चैत हे सखी बेली फुलि गेल
 +
फुलि गेल कुसुम गुलाब
 +
ओहि फूलबा के हार गुथबितऊँ
 +
मेजितऊँ पहुँजी के देस
 +
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
 +
बैसाख हे सखी गरमी लगतु हैं
 +
सब सखी बंगला छेबाय
 +
सब के सखी सब बंगला छबाइहो
 +
बीनु पीया बंगला उदास
 +
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
 +
जेठ हे सखी भेंट भय गेल
 +
पुरि गेल बारह मास
 +
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
  
चैत मास गृह अयोध्या त्यागल हानि से भीपति परी <br>
+
प्रीतम हमरो तेजने जाइ छी परदेशिया यौ
अलख निरञ्जन पार उतरि गेल तपसी के वेश धरी <br>
+
धरबै जोगनीक भेष यौ ना...
हो विकल रघुलाथ भये.....<br>
+
एक त साबन बीत गेल
कहाँ विलमस हनुमान विकल रघुलाथ भये।<br>
+
दोसर भादब बीत गेल
धूप-दीप बिनु मन्दिर सुन्न भैल मास बैसाख चढ़ी <br>
+
तेसर बीतल जाइछै आसिन सन के मास यौ
सीमा बीना मन्दिर भेल सुना बन बीच कुहकि रही <br>
+
धरबै जोगनीक भेष यौ ना...
कहाँ विलमल हनुमान.....<br>
+
कार्तिक चिठ्ठिया लीखाएब
जेठ वान लगे लछमन के धरनी से मरक्षि खसी<br>
+
अगहन पीया के मंगायब
वैद्य सुखेन बताबय श्रीजमणि तब लछमन उबरी<br>
+
पुस कुसलों ने बुझलऊँ परदेशिया यौ
हो विकल रघुनाथ भये.....<br>
+
धरबै जोगनीक भेष यौ ना...
कहाँ विलमल हनुमान.....<br>
+
माघ सीरक भरायब
राम सुमरि बीड़ापान उठायल धवलगिरि चली<br>
+
फागून फगुआ खेलाएब
मास अषाढ़ घटा-घन घहरे राम सुमरिक चली<br>
+
चैत चीतयो ने रहतई थीर यौ
हो विकल रघुनाथ भये.....<br>
+
धरबै जोगनीक भेष यौ ना...
कहाँ विलमल हनुमान.....<br>
+
बैसाख साड़ी हम रंगायब
साबन सर्व सुहावन रघुबन सजमनि लेख न पटी <br>
+
जेठ पहीर पीया घर जायब
दामिनि दमके तरस दिखाबे जब मोन सब घबरी<br>
+
अखाढ़ बेनिया डोलाएब उमरेस में
हो विकल रघुनाथ भये.....<br>
+
धरबै जोगनीक भेष यौ ना...
कहाँ विलमल हनुमान.....<br>
+
असाढ़ पुरि गेल बारह मास यौ
भादब परबत भोर उखारल बुन्दक मार परी<br>
+
धरबै जोगनीक भेष यौ ना...
निसि अन्धयारी पंथ नहिं सूझल राम सुमरि क चली<br>
+
</poem>
हो विकल रघुनाथ भये.....<br>
+
कहाँ विलमल हनुमान.....<br>
+
आसिन मास देखे रघुबर जी देखि लथुमन हहरी<br>
+
सीता सोचती सोचे रघुबरजी लछुमन सुधि बिसरी<br>
+
हो विकल रघुनाथ.....<br>
+
कहाँ विलमल हनुमान.....<br>
+
अगहन रघुबर आशिष मांगथि हर्षित सब भई<br>
+
ओहि अबसर अञ्जनिसुत अचला सब मोन हर्षित भई<br>
+
हो विकल रघुनाथ भये.....<br>
+
कहाँ विलमल हनुमान.....<br><br>
+
 
+
 
+
अगहन दिन उत्तम सुख-सुन्दर घर-घर सारी समाय<br>
+
रतन बयस सँ मोन सुख सुन्दर से छोड़ने कोना जायव<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब.....<br>
+
पूष कोठलिया ऊँच अटरिया, तकिया तुराय<br>
+
अतर, गुलाब, सेन्ट गमकायब अतेक मजा कहाँ पाएब<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब.....<br>
+
माधक सेला सचे हूमेला जैब बिदेसर धाम<br>
+
पान सुपारी जरदा खाएब घुमब शहर बजार<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब.....<br>
+
फागून फगुआ दूनू मिली खेलब घोरब रंग अबीर<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब.....<br>
+
अतर गुलाब, सेन्ट गमकाएब घोटि-घोटि धारब अबीर<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब.....<br>
+
चैतहिं बेली फुलय बनबेली, अद फुलय कचनार<br>
+
सेहो फूल लोढि-लोढि हार बुनाएब भेजब पीयाजी के पास<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब.....<br>
+
बैसाखक ज्वाला करे मोन ब्योला सोने मुढी बेनिया डोलारब<br>
+
कोमल हाथ सँ बेनिया डोलाएब अतेक मजा कहाँ पाएब<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब.....<br>
+
जेठहिं कान्त कतय गमाओल आयल अषाढ़क मास<br>
+
लाल रे पलंगिया घरहिं ओछाएब सेवा करब अपार<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब.....<br>
+
सावन-भादब के मेघबा गरजै जुनि मेघ बरसु आजु<br>
+
कोना क बालमु पार उतरताह नै रे नाव करुआर<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब.....<br>
+
आसिन-कातिक के पर्व लगतु हैं सब सखी गंगा-स्नान<br>
+
बिना बालमुजी के नीको ने लागय<br>
+
पुरि गेल बारह मास<br>
+
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब.....<br><br>
+
 
+
 
+
चोआ चानन अंग लगाओल कामीनि कायल किंशगार<br>
+
जे दिन मोहन मधउपुर गेलाह से दिन मास अखाढ़ रे कन्हैया के मनाय ने दीप.....<br>
+
उधो बारि रे बयस बीतल जाय <br>
+
हे कन्हैया के मनाय ने दीप.....<br>
+
एक त गोरी बारी बयसिया<br>
+
दोसर पीया परदेशिया<br>
+
तेसर बून्द झलामलि बरसै<br>
+
साबन अधिक कलेश<br>
+
हे कन्हैया के मनाय ने दीप.....<br>
+
भादब हे सखी मरम भयाबन<br>
+
दोसर राति अन्हार<br>
+
लाका लौके बीजुरी चमके<br>
+
ककरा मड़ैया हैब ठाढ़<br>
+
हे कन्हैया के मनाय ने दीप.....<br>
+
आसिन हे सखि आस लगाओल<br>
+
आस ने पुरल हमार<br>
+
आसो जे पुरलन्हि कुब्जी सौतिनियाँ के<br>
+
जे पाहुन रखल हमार<br>
+
हे कन्हैया के मनाय ने दीप.....<br>
+
कातिक हे सखी पर्व लगत है<br>
+
सब सखी गंगास्नान<br>
+
सब सखी मीली गंगा नहाबीय<br>
+
बीना पीया पर्व उदास<br>
+
हे कन्हैया के मनाय ने दीप.....<br>
+
अगहन हे सखी सारी लबीय गेल<br>
+
लबि गेल लोचन मोर<br>
+
चिदई-चुनमुन सुखहिं खेपय<br>
+
हम धनी बीरहा के मात<br>
+
हे कन्हैया के मनाय ने दीप.....<br>
+
पुंसहिं हे सखी ओस खसथु हैं<br>
+
भीजी गेल लाम्बी केस<br>
+
सब रे सखी मीली सीरक भरेलऊँ<br>
+
बीनु पीया जारो ने जाय<br>
+
हे कन्हैया के मनाय ने दीप.....<br>
+
चैत हे सखी बेली फुलि गेल<br>
+
फुलि गेल कुसुम गुलाब<br>
+
ओहि फूलबा के हार गुथबितऊँ<br>
+
मेजितऊँ पहुँजी के देस<br>
+
हे कन्हैया के मनाय ने दीप.....<br>
+
बैसाख हे सखी गरमी लगतु हैं<br>
+
सब सखी बंगला छेबाय<br>
+
सब के सखी सब बंगला छबाइहो<br>
+
बीनु पीया बंगला उदास<br>
+
हे कन्हैया के मनाय ने दीप.....<br>
+
जेठ हे सखी भेंट भय गेल<br>
+
पुरि गेल बारह मास<br>
+
हे कन्हैया के मनाय ने दीप.....<br><br>
+
 
+
 
+
प्रीतम हमरो तेजने जाइ छी परदेशिया यौ<br>
+
धरबै जोगनीक भेष यौ ना.....<br>
+
एक त साबन बीत गेल<br>
+
दोसर भादब बीत गेल<br>
+
तेसर बीतल जाइछै आसिन सन के मास यौ<br>
+
धरबै जोगनीक भेष यौ ना.....<br>
+
कार्तिक चिठ्ठिया लीखाएब<br>
+
अगहन पीया के मंगायब<br>
+
पुस कुसलों ने बुझलऊँ परदेशिया यौ<br>
+
धरबै जोगनीक भेष यौ ना.....<br>
+
माघ सीरक भरायब<br>
+
फागून फगुआ खेलाएब<br>
+
चैत चीतयो ने रहतई थीर यौ<br>
+
धरबै जोगनीक भेष यौ ना.....<br>
+
बैसाख साड़ी हम रंगायब<br>
+
जेठ पहीर पीया घर जायब<br>
+
अखाढ़ बेनिया डोलाएब उमरेस में<br>
+
धरबै जोगनीक भेष यौ ना.....<br>
+
असाढ़ पुरि गेल बारह मास यौ<br>
+
धरबै जोगनीक भेष यौ ना.....<br>
+

10:50, 27 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

साओनर साज ने भादवक दही।
आसिनक ओस ने कार्तिकक मही।।
अगहनक जीर ने पुषक धनी।
माधक मीसरी ने फागुनक चना।।
चैतक गुड़ ने बैसाखक तेल।
जेठक चलब ने अषाढ़क बेल।।
कहे धन्वन्तरि अहि सबसँ बचे।
त वैदराज काहे पुरिया रचे।।

चानन रगड़ि सुहागिनी हे गेले फूलक हार।
सेनुरा सँ संगिया भरल अछि हे सुख मास अषाढ़।।
राजा गेलाह मृग मारन हे वन गेलाह शिकार।
जोगी एक ठाढ़ अंगना में हे रानी सुनि लीय बात हमार।।
द दिय भीक्षा जोगी के हे ओ त छोड़ता द्वार।।
सावन बड़ा सुख दावन हे दु:ख सहलो ने जाय।
इहो दुख होइहन्डु रानी कुब्जी के जो कन्त रखली लोभाय।।
भादब भरम भयावन हे गरजै ढ़हनाय
सबके बलम देखि घर में हे ककरा संग जाय
आसिन कुमर आबि गेल हे कि ओ आब ने जिथि
चीढ्ढी में लीखल वियोगिया हे हजमा हाथे देब
कातिक परबहिं लागि गेल हे गोरी-गंगा-स्नान
गंगा नहाय लट झारलऊँ हे सीथ लागे उदास
अगहन सारी लबीय गेल हे फुटि गेल सब रंग धान
प्रभुजी त छथि परदेसिया हे कियो भोगत आन
पुसहिं ओसहिं गिड़ि गेल हे भीजि गेल लाम्बी-लाम्बी केस
केसब सुखाबी ओसरबा हे सीथ लागे उदास
माघहि मास चतुर्दशी हे शीब-ब्रत तोहार
घुमि-फिरि अचलऊँ मन्दिरबा हे चित लागय उदास
फागुन फगुआ खेलबितऊँ हे निरमोहिया के साथ
प्रभुजी के हाथ पीचकारी हे उड़िते अतरी गुलाब
चैतहिं बेली फूलाय गेल हे फूलि गेल कुसुम गुलाब
फूलबा के हार गुथबितहुँ हे भेजितऊँ प्रभु के सनेश
वैसाखहिं बंसबा कटबितऊँ हे रचि बंगला छेबाय
ओहि दे बंगला बीच सुतितऊँ हे रसबेनिया डोलाय
जेठहिं मास भेंट भा गोल हे पिरि गेल बारह मास
प्रभुजी त एला जगरनाथ हे कन्त लीय समुझाय।।

चैत मास गृह अयोध्या त्यागल हानि से भीपति परी
अलख निरञ्जन पार उतरि गेल तपसी के वेश धरी
हो विकल रघुलाथ भये...
कहाँ विलमस हनुमान विकल रघुलाथ भये।
धूप-दीप बिनु मन्दिर सुन्न भैल मास बैसाख चढ़ी
सीमा बीना मन्दिर भेल सुना बन बीच कुहकि रही
कहाँ विलमल हनुमान...
जेठ वान लगे लछमन के धरनी से मरक्षि खसी
वैद्य सुखेन बताबय श्रीजमणि तब लछमन उबरी
हो विकल रघुनाथ भये...
कहाँ विलमल हनुमान...
राम सुमरि बीड़ापान उठायल धवलगिरि चली
मास अषाढ़ घटा-घन घहरे राम सुमरिक चली
हो विकल रघुनाथ भये...
कहाँ विलमल हनुमान...
साबन सर्व सुहावन रघुबन सजमनि लेख न पटी
दामिनि दमके तरस दिखाबे जब मोन सब घबरी
हो विकल रघुनाथ भये...
कहाँ विलमल हनुमान...
भादब परबत भोर उखारल बुन्दक मार परी
निसि अन्धयारी पंथ नहिं सूझल राम सुमरि क चली
हो विकल रघुनाथ भये...
कहाँ विलमल हनुमान...
आसिन मास देखे रघुबर जी देखि लथुमन हहरी
सीता सोचती सोचे रघुबरजी लछुमन सुधि बिसरी
हो विकल रघुनाथ...
कहाँ विलमल हनुमान...
अगहन रघुबर आशिष मांगथि हर्षित सब भई
ओहि अबसर अञ्जनिसुत अचला सब मोन हर्षित भई
हो विकल रघुनाथ भये...
कहाँ विलमल हनुमान...

अगहन दिन उत्तम सुख-सुन्दर घर-घर सारी समाय
रतन बयस सँ मोन सुख सुन्दर से छोड़ने कोना जायव
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
पूष कोठलिया ऊँच अटरिया, तकिया तुराय
अतर, गुलाब, सेन्ट गमकायब अतेक मजा कहाँ पाएब
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
माधक सेला सचे हूमेला जैब बिदेसर धाम
पान सुपारी जरदा खाएब घुमब शहर बजार
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
फागून फगुआ दूनू मिली खेलब घोरब रंग अबीर
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
अतर गुलाब, सेन्ट गमकाएब घोटि-घोटि धारब अबीर
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
चैतहिं बेली फुलय बनबेली, अद फुलय कचनार
सेहो फूल लोढि-लोढि हार बुनाएब भेजब पीयाजी के पास
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
बैसाखक ज्वाला करे मोन ब्योला सोने मुढी बेनिया डोलारब
कोमल हाथ सँ बेनिया डोलाएब अतेक मजा कहाँ पाएब
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
जेठहिं कान्त कतय गमाओल आयल अषाढ़क मास
लाल रे पलंगिया घरहिं ओछाएब सेवा करब अपार
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
सावन-भादब के मेघबा गरजै जुनि मेघ बरसु आजु
कोना क बालमु पार उतरताह नै रे नाव करुआर
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...
आसिन-कातिक के पर्व लगतु हैं सब सखी गंगा-स्नान
बिना बालमुजी के नीको ने लागय
पुरि गेल बारह मास
ललन ससुरारि छोड़ि कोना जाएब...

चोआ चानन अंग लगाओल कामीनि कायल किंशगार
जे दिन मोहन मधउपुर गेलाह से दिन मास
अखाढ़ रे कन्हैया के मनाय ने दीप...
उधो बारि रे बयस बीतल जाय
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
एक त गोरी बारी बयसिया
दोसर पीया परदेशिया
तेसर बून्द झलामलि बरसै
साबन अधिक कलेश
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
भादब हे सखी मरम भयाबन
दोसर राति अन्हार
लाका लौके बीजुरी चमके
ककरा मड़ैया हैब ठाढ़
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
आसिन हे सखि आस लगाओल
आस ने पुरल हमार
आसो जे पुरलन्हि कुब्जी सौतिनियाँ के
जे पाहुन रखल हमार
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
कातिक हे सखी पर्व लगत है
सब सखी गंगास्नान
सब सखी मीली गंगा नहाबीय
बीना पीया पर्व उदास
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
अगहन हे सखी सारी लबीय गेल
लबि गेल लोचन मोर
चिदई-चुनमुन सुखहिं खेपय
हम धनी बीरहा के मात
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
पुंसहिं हे सखी ओस खसथु हैं
भीजी गेल लाम्बी केस
सब रे सखी मीली सीरक भरेलऊँ
बीनु पीया जारो ने जाय
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
चैत हे सखी बेली फुलि गेल
फुलि गेल कुसुम गुलाब
ओहि फूलबा के हार गुथबितऊँ
मेजितऊँ पहुँजी के देस
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
बैसाख हे सखी गरमी लगतु हैं
सब सखी बंगला छेबाय
सब के सखी सब बंगला छबाइहो
बीनु पीया बंगला उदास
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...
जेठ हे सखी भेंट भय गेल
पुरि गेल बारह मास
हे कन्हैया के मनाय ने दीप...

प्रीतम हमरो तेजने जाइ छी परदेशिया यौ
धरबै जोगनीक भेष यौ ना...
एक त साबन बीत गेल
दोसर भादब बीत गेल
तेसर बीतल जाइछै आसिन सन के मास यौ
धरबै जोगनीक भेष यौ ना...
कार्तिक चिठ्ठिया लीखाएब
अगहन पीया के मंगायब
पुस कुसलों ने बुझलऊँ परदेशिया यौ
धरबै जोगनीक भेष यौ ना...
माघ सीरक भरायब
फागून फगुआ खेलाएब
चैत चीतयो ने रहतई थीर यौ
धरबै जोगनीक भेष यौ ना...
बैसाख साड़ी हम रंगायब
जेठ पहीर पीया घर जायब
अखाढ़ बेनिया डोलाएब उमरेस में
धरबै जोगनीक भेष यौ ना...
असाढ़ पुरि गेल बारह मास यौ
धरबै जोगनीक भेष यौ ना...